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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 213 वेश धारण, ८. चोटी- ग्रहण, ६. सम्यक्त्व सामायिक - देशविरतिसामायिक का स्वीकार, १०. अक्षत अभिमन्त्रण - विधि, १२. स्तोभवन्दन - विधि ४. नूतननामकरण - विधि । ५. गुरु द्वारा नवीन साधु को धर्मोपदेश । ६. विसर्जन विधि १. दशदिक्पाल विर्सजन, २. नवग्रह विसर्जन एवं ३. नन्दि विसर्जन विधि ' दीक्षा-योगविधि यह भी एक संकलित की गई कृति है। इसका सम्पादन योगिराज शान्तिविमलगणि ने किया है। यह प्राचीन गुजराती भाषा में निबद्ध है। इस कृति में तपागच्छीय परम्परानुसार विधियों का संग्रह किया है। यद्यपि दीक्षा विधि का विवरण कई ग्रन्थों में उपलब्ध होता है किन्तु दीक्षाविधि के साथ-साथ उपस्थापना ( बडी दीक्षा) की भूमिका में प्रवेश करने के लिए आवश्यकसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र और मांडली के योग ( तप अनुष्ठान ) अनिवार्यतः करने होते हैं इन योग विधियों सम्बन्धी और दीक्षा सम्बन्धी ये सभी विधि-विधान एक साथ संकलित हों और वह भी पूर्ण स्पष्टता के साथ हों उस सम्बन्ध में हमें यह प्रथम कृति देखने को मिली है। इसमें योग विधियों का विस्तार के साथ निरूपण हुआ है। इसमें कुछ अन्य विधियाँ भी दी गई है। प्रस्तुत कृति में संकलित विधियाँ निम्नलिखित हैं- १. दीक्षा ग्रहण विधि २. उपस्थापना विधि ३. व्रतोच्चारण विधि- इसमें ब्रह्मचर्यव्रत, बीशस्थानक तप ज्ञानपंचमी तप, रोहिणी तप, मौनएकादशी तप, बारहव्रत और सम्यक्त्वव्रत इन सभी तपों एवं व्रतों को ग्रहण करने की विधियाँ दी गई हैं । ४. संघपति को तीर्थमाल पहराने की विधि ५. बारह मास में कायोत्सर्ग करने की विधि ६. लोच करने की विधि ७. आवश्यकसूत्र योग विधि - इस सूत्र का योग आठ दिन में पूरा होता है। इसमें आठ ही दिनों की विधियाँ पृथक्-पृथक् दी गई है। वे इस प्रकार हैं- १. आवश्यकसूत्र के प्रथम दिन की विधि १.१ आवश्यकसूत्र योग में प्रवेश करने की विधि १.२ आवश्यक श्रुतस्कंध के उद्देशनंदी की विधि १.३ आवश्यक श्रुतस्कंध की उद्देश विधि १.४ आवश्यक श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन की उद्देश विधि १.५ आवश्यक श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन की समुद्देश विधि १.६ आवश्यक श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन की वाचना विधि १.७ आवश्यक श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन की अनुज्ञा विधि १.८ प्रवेदन विधि १.६ स्वाध्याय (सज्झाय ) विधि २. आवश्यकसूत्र के द्वितीय दिन की विधि २.१ आवश्यक श्रुतस्कंध के दूसरे अध्ययन की उद्देश विधि, समुद्देश विधि, वाचना विधि, अनुज्ञा विधि और Jain Education International - , यह पुस्तक श्री आनन्द ज्ञान मन्दिर, सैलाना से वि.सं. २०५१ में प्रकाशित हुई है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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