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212/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
दीक्षाविधि तथा व्रतविधि
यह अज्ञातकर्तृक रचना प्राकृत एवं गुजराती मिश्रित गद्य में गुम्फित है और अत्यन्त संक्षिप्त है।' संभवतः यह कृति संकलित की हई प्रतीत होती है। इसमें अपने नाम के अनुसार दीक्षा एवं व्रत सम्बन्धी विधियों का उल्लेख हुआ है। इस कृति में निम्नविधियाँ दी गई हैं- १. दीक्षा ग्रहण करने की विधि २. ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने की विधि ३. बीशस्थानक आदि तप ग्रहण करने की विधि ४. पैंतालीसआगम की तप आराधना विधि ५. चौदहपूर्व की तप आराधना विधि।
प्रस्तुत प्रति के अवलोकन से इतना स्पष्ट होता है कि यह कृति देवमुनि के शिष्य धरणेन्द्र मुनि की प्ररेणा से प्रकाशित हुई है। इस कृति में दीक्षाविधि का उल्लेख तपागच्छीय परम्परानुसार हुआ है। दीक्षाविधि
__ हमें जिनरत्नकोश में जैनदीक्षाविधि सम्बन्धी सात कृतियों के नाम देखने को मिले हैं उनमें 'दीक्षाकुलक' 'दीक्षादिविधि' 'दीक्षापटल' ये तीन कृ तियाँ बंगाल के ज्ञानभंडारों में सुरक्षित हैं। इसका विवरण उपलब्ध नहीं हुआ है। 'दीक्षाद्वात्रिंशिका' नामक रचना दिगम्बर मुनि परमानन्द की है। 'दीक्षाविधानपंचाशक' आचार्य हरिभद्रसूरि का है। 'दीक्षाविधि' नाम की दो कृ तियाँ एक प्राकृत में हैं और एक संस्कृत में है। ये रचनाएँ हंसविजयजी की । लायब्रेरी में मौजूद हैं। दीक्षाविधि
यह कृति संस्कृत-हिन्दी मिश्रित भाषा में है। इसमें मूलतः विधिमार्गप्रपा आदि ग्रन्थानुसार दीक्षा विधि का संकलन किया गया है। इसका संशोधन आनन्दसागर जी ने किया है। यह दीक्षाविधि खरतरगच्छ की परम्परानुसार निर्दिष्ट है। इसमें दीक्षाविधि से सम्बन्धित निम्न विधान कहे गये हैं - १. दीक्षा ग्रहण से पूर्व दिन की विधि २. दीक्षा के दिन नन्दी स्थापना हेतु करने योग्य विधियाँ २.१ नन्दी स्थापना विधि। २.२ दिक्पाल स्थापना विधि। २.३ नवग्रह स्थापना विधि। ३. दीक्षा विधि- इसके अन्तर्गत निम्न विधान सम्पन्न किये जाते हैं- ३.१ दीक्षा का निर्णय, २. दीक्षार्थी की परीक्षा, ३. दीक्षार्थी माता-पिता द्वारा अनुमति ग्रहण, ४. देववन्दन-विधि, ५. उपकरण मंत्र विधान, ६. वेश अर्पण, ७.
' इसका प्रकाशन वि.सं. १६७४ में श्री यशोविजय जैन ग्रन्थमाला से हुआ है। २ जिनरत्नकोश पृ. १७४-१७५
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