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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/201 तैतीस आशातना, वन्दना के बत्तीस दोष, वन्दन करने के आठ कारण एवं वन्दन न करने से होने वाले छः दोष इस प्रकार वन्दन सम्बन्धी १६८ विषयों का विवेचन हुआ है। प्रतिक्रमण आवश्यक - प्रतिक्रमण आवश्यक विधि का प्रतिपादन करते हुए निम्न बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है- १. साधु के अतिचारों की आलोचना का स्वरूप २. पाँच प्रकार के आचारों का स्वरूप ३. संघादि से क्षमायाचना का स्वरूप ४. शयन के पूर्व करने योग्य अतिचारों का प्रतिक्रमण ५. शयन सम्बन्धी अतिचारों का प्रतिक्रमण ६. भिक्षा में लगे हुए दोषों का प्रतिक्रमण ७. प्रतिलेखनादि अतिचारों का प्रतिक्रमण ८. एक से लेकर तैंतीस स्थानों का प्रतिक्रमण ६. तैंतीस आशातनाओं का प्रतिक्रमण १०. पाक्षिक सूत्र की व्याख्या ११. वंदित्तुसूत्र की व्याख्या १२. व्रतों के अतिचारों का प्रतिक्रमण इत्यादि। कायोत्सर्ग आवश्यक- इस आवश्यक के अन्तर्गत कायोत्सर्ग के दोष, कायोत्सर्ग के विकल्प आदि का वर्णन है प्रत्याख्यान आवश्यक- इस आवश्यक में प्रत्याख्यान का स्वरूप, प्रत्याख्यान की छः शुद्धि, दस प्रकार के प्रत्याख्यान, पिण्डित प्रत्याख्यान आदि का उल्लेख किया गया है। ७. तपविधि - इस अधिकार में तप का स्वरूप, तप करने योग्य श्रावक के गुण तथा तप योग्य शुभ दिनादि का वर्णन किया गया है। तदनन्तर तीन भागों में विभाजित कर ६५ प्रकार की तप विधियों का स्वरूप दर्शाया गया है। १. तीर्थकर परमात्मा द्वारा कहे गये तप- इसमें उपधानादि ११ प्रकार के तप लिये गये हैं। २. गीतार्थों द्वारा आचरित एवं कथित तप- इस दूसरे प्रकार में कल्याणक आदि ५७ प्रकार के तप गिनाये गये हैं। ३. फल प्रधान तप- इस तीसरे प्रकार में रोहिणी आदि २७ प्रकार के तप विधियों का विवेचन किया गया है। प्रस्तुत कृति में इन तपों के यन्त्र भी दिये गये हैं। ५. पदारोपणअधिकार विधि- इस अन्तिम अधिकार में १७ प्रकार के व्यक्ति विशेषों की पदारोपण विधि का उल्लेख किया गया है। उनके नाम निम्न हैं - १. यतियों की पदारोपण विधि २. आचार्य की पदारोपण विधि ३. उपाध्याय की पदारोपण विधि ४. स्थानपति की पदारोपण विधि ५. कर्म अधिकारी की पदारोपण विधि ६. क्षत्रिय की पदारोपण विधि ७. राजा की पदारोपण विधि ८. रानी की पदारोपण विधि ६. सामन्त की पदारोपण विधि १०. मण्लेश्वर की पदारोपण विधि ११. ग्रामाधिपति की पदारोपण विधि १२. मन्त्रि की पदारोपण विधि १३. सेनापति पद पर स्थापित करने की विधि १४. वैश्य और शुद्र की विधि १५. पशुओं की पदारोपण विधि १६. संघपति की पदारोपण विधि १७. नामकरण की विधि इसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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