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202 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
साथ ही इसमें ४२ प्रकार की मुद्राओं का स्वरूप फलसहित बताया गया है। इस प्रकार यह ग्रन्थ ४० विधि-विधानों के साथ सम्पूर्ण होता है।
यह कृति संस्कृत प्रधान होने पर भी, इसमें आगमों एवं आगमेत्तर ग्रन्थों से अनेक प्राकृत गाथाएँ निबद्ध की गई हैं। कहीं कहीं तो पूरा का पूरा प्रकरण या ग्रन्थ ही उद्धृत है। जैसे- मानदेवसूरिकृत उपधानविधि, जिसमें ५४ गाथाएँ है वह महानिशीथ से उद्धृत किया गया है। इसके अतिरिक्त कई स्थलों पर प्राकृत गाथाएँ भी दृष्टिगत होती हैं जैसे- व्रतारोपण संस्कार में गुरु के गुण एवं श्रावक के गुणों की गाथाएँ प्राकृत में है। देववन्दन के समय कहे जाने वाला 'अरहणादिस्तोत्र' ३७ गाथाओं में निबद्ध है । परिग्रह परिमाण का टिप्पनक ४६ पद्यों सहित प्राकृत में है । अहोरात्रचर्या विधि के अन्तर्गत उपकरण संख्या सम्बन्धी ५१ गाथाएँ प्राकृत में उद्धृत की गई हैं इत्यादि ।
अन्त में ग्रन्थकार ने प्रशस्ति रूप ३१ श्लोक दिये हैं उनमें उन्होंने परमात्मा महवीर की परम्परा से अपनी परम्परा का सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया है। बीच में हरिभद्रसूरि, अभदेवसूरि, वल्लभसूरि आदि अनेक पूर्वाचार्यों के नाम दिये हैं। उसके बाद स्व परम्परा का उल्लेख करते हुए क्रमशः जिनशेखरसूरि, पद्मचन्द्रगणि, अभयदेवसूरि, देवभद्र, भद्रंकरसूरि, चन्द्रसूरि, विजयचन्द्रसूरि, जिनभद्रसूरि, गुणचन्द्रसूरि उनके शिष्य जयानन्दसूरि और उनके शिष्य वर्धमानसूरि हुए, ऐसा निर्देश किया गया है। ये वर्धमानसूरि खरतरगच्छ की रुद्रपल्लीय शाखा के थे। इसमें ग्रन्थ रचना का प्रयोजन, ग्रन्थ रचना का स्थल, ग्रन्थरचना का काल भी उल्लिखित हुआ है। अन्त में क्षमायाचना करके ग्रन्थ की इति श्री की गई है।
ओघनिर्युक्ति
ओघनिर्युक्ति नामक यह ग्रन्थ' चौथे मूलसूत्र के रूप में माना गया है। इसमें साधुचर्या सम्बन्धी नियम और आचार-विचार विषयक कई प्रकार के विधि-विधान प्रतिपादित किये गये हैं । इसके कर्त्ता आचार्य भद्रबाहुस्वामी है। इस निर्युक्ति पर द्रोणाचार्य ने वृत्ति लिखी है। इसमें ८११ प्राकृत गाथाएँ हैं। इस ग्रन्थ में प्रतिलेखन द्वार, पिंड द्वार, उपधिनिरूपण, अनायतनवर्जन, प्रतिसेवना द्वार, आलोचना द्वार और विशुद्धि द्वार इत्यादि विषयों का निरूपण हुआ है। जैन
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यह ग्रन्थ द्रोणाचार्यविहित वृत्ति सहित- आगमोदयसमिति, महेसाना, सन् १९१६ में प्रकाशित हुआ है। इसक एक संस्करण सन् १६५७, विजयदानसूरीश्वर जैन ग्रन्थमाला - सूरत से प्रकाशित
है।
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