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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/195 ८. उपाध्यायपद-स्थापना विधि - इसमें उपाध्याय पदस्थापना विधि को कुछ अन्तर के साथ आचार्य पदस्थापना के समान बतायी गई है उपाध्यायपद पर स्थापित किये जाने वाले मुनि के सन्दर्भ में यह विशेष कहा गया है कि उन्हें अक्षमुष्टि प्रदान नहीं करते हैं। उनके लिए कालग्रहण विधि एवं बृहत्नंदिपाठ का श्रवण भी नहीं होता है। केवल तीन बार लघुनन्दि का पाठ सुनाते हैं और वर्द्धमान विद्या पट्ट प्रदान करते हैं। ६. आचार्यपद-स्थापना विधि - इस उदय में आचार्यपद स्थापना की विधि का वर्णन करते हुए आचार्यपद प्रदान के योग्य नक्षत्र, वार, दिन, मास, वर्ष, लग्न, ग्रह आदि की शुद्धि दीक्षा विधि के समान जाननी चाहिए, ऐसा निर्देश किया गया है। इसके साथ ही आचार्यपद के योग्य एवं अयोग्य मुनि के लक्षण बताये गये हैं। इसके अतिरिक्त आचार्यपद प्रदान करते समय मस्तक पर निक्षेप किये जाने वाला वासचूर्ण सोलह मुद्राओं एवं सूरिमन्त्र से मन्त्रित होता है ऐसा सूचन किया गया है। अन्त में श्रावक वर्ग के द्वारा आठ या दश दिन तक संघ पूजादि महोत्सव किये जाने का उल्लेख है। १०. बारहप्रतिमा धारण/ग्रहण विधि - इस उदय में प्रतिमा वहन योग्य मुनि के लक्षण, प्रतिमा ग्रहण के योग्य शुभ दिनादि, बारह प्रतिमाओं के नाम एवं उन बारह प्रतिमाओं के ग्रहण करने की विधि विवेचित की गई है। इसके साथ ही बारह प्रतिमाओं की सर्व दिनों की संख्या २८ मास और २६ दिन बतायी गई हैं तथा तप संख्या में ८४० दत्ति, २६ उपवास और २८ एकभक्त होते हैं ऐसा सूचन किया गया है। ११. व्रतिनी (साध्वी) व्रतदान विधि - इस उदय में दीक्षा लेने योग्य स्त्रियों के लक्षण एवं उनके व्रतदान की विधि बतायी गई है। १२. प्रवर्तिनीपद स्थापना विधि - इस उदय में प्रवर्तिनीपद के योग्य साध्वी के लक्षण बताते हुए प्रवर्तिनीपद स्थापना की विधि प्रदर्शित की गई है। १३. महत्तरापद-स्थापना विधि - इसमें महत्तरापद के योग्य साथ्वी के लक्षण एवं महत्तरापद स्थापना की विधि चर्चित है ___ १४. अहोरात्र-दिनचर्या विधि - इस उदय के प्रारम्भ में यह कहा गया है कि धर्मोपकरण के बिना साधु-साध्वी की चर्या विधि कहना असंभव है अतः इसमें सर्वप्रथम जिनकल्पी साधु के १२ उपकरण, स्थविर कल्पी साधु के १४ उपकरण, स्थविर कल्पी साध्वियों के २५ उपकरण, स्वयंबुद्ध साधु के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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