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________________ 196/संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य १२ उपकरण कहे गये हैं इसके साथ ही प्रत्येक उपकरण का स्वरूप एवं परिमाण, उनका उपयोग कब कैसे करना चाहिए? आदि का विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। तदनन्तर साधु की अहोरात्रचर्या विधि का सम्यक् रूप से प्रतिपादन किया गया है इसमें प्रसंगवश विहार का काल, विहार करने योग्य मुनि के लक्षण, विहार योग्य उपकरण, विहार योग्य देश (इसमें आर्य-अनार्य देशों के नाम) विहार प्रस्थान के योग्य दिनादि का उल्लेख भी किया गया है। १५. ऋतुसम्बन्धी-चर्या विधि - इस उदय के प्रारंभ में वस्त्र, पात्र. स्थान, शरीरादि की शुद्धि हेतु कल्पतर्पण विधि दिखलायी गयी है इसके सम्बन्ध में 'छहमासिक कल्प उतारने की विधि' भी कही गई है। तदनन्तर हेमन्त, बसन्त, शिशिर आदि ऋतुओं के समय साधू को क्या-क्या करना चाहिए, उस पर प्रकाश डाला गया है। यहाँ प्रसंगवश लोच करण विधि, मलमास में वर्जित कार्यादि का भी संक्षिप्त विवेचना किया गया है। १६. अन्तिमआराधना विधि- इस अधिकार में मरण प्राप्त अचित्त मुनि के शरीर का परिष्ठापन कैसे करना चाहिए उसके सम्बन्ध में निम्न विधानों का उल्लेख किया गया है। इसमें निर्देश है कि पहले से ही दूर-मध्य एवं निकट ऐसे तीन प्रकार की स्थण्डिल भूमि देख लेनी चाहिए। शव को रात्रि भर रखना पड़े तो गीतार्थ साधुओं को रात्रि में जागरण करना चाहिए। इसके साथ ही मृतात्मा रात्रि में उठ जाये तो उसे कैसे शान्त करना चाहिए? स्थण्डिल भूमि की ओर ले जाते समय मृतात्मा के पॉव किस दिशा की ओर रखने चाहिये? परिष्ठापन करने की भूमि पर क्या विधि करनी चाहिए? पैंतालीस, पच्चीस एवं पन्द्रह मुहूर्त वाले नक्षत्रों में किसी मुनि का मरण होने पर कितने पुतले बनाने चाहिए? परिष्ठापित करने के बाद कैसे लौटना चाहिए? वसति (उपाश्रय) में क्या-क्या विधि करनी चाहिए इत्यादि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है। (ग) साधु एवं गृहस्थ दोनों से सम्बन्धित विधि विधान आचारदिनकर के दूसरे भाग में आठ विधि-विधान साधु एवं गृहस्थ दोनों से सम्बन्धित कहे गये हैं। वे विधान निम्न हैं १. प्रतिष्ठाधिकार विधि - इस उदय में प्रतिष्ठा का स्वरूप बताते हुए बीस प्रकार की प्रतिष्ठाविधियों के नामों का उल्लेख किया गया है। वे बीस नाम ये हैं - १. बिम्ब प्रतिष्ठा विधि- यह प्रतिष्ठा विधि शैलमय, काष्ठमय, धातुमय, लेप्यमय एवं गृहचैत्य में स्थापित बिम्बों के विषय में जाननी चाहिए। इस विधि के अन्तर्गत निम्न विषयों की चर्चा की गई हैं- १. चैत्य में स्थापित किये जाने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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