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________________ 194 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य की चर्चा की गई है । ६ श्लोकों में योगभंग की प्रायश्चित्त विधि का निरूपण किया गया है । उसके बाद कालिक सूत्रों के योगवहन में करने योग्य आवश्यक विधि-विधान बताये गये हैं उनमें १. चरसंघट्टा (संस्पर्श) ग्रहण करने की विधि २. स्थिरसंघट्टा ग्रहण करने की विधि - इसमें भी हस्तसंघट्टा, पादसंघट्टा, रजोहरणसंघट्टा, झोलीसंघट्टा, पात्रसंघट्टा, दोरीसंघट्टा आदि ग्रहण करने की विधियाँ प्रमुख रूप से वर्णित हुई हैं इसके साथ ही काल ग्रहण के लिए उचितोनुचित काल (समय) बताया गया है साथ ही मरण सूतक एवं ऋतु सम्बन्धी अस्वाध्याय काल का सूचन किया गया है। इसके अतिरिक्त योगवहन प्रारंभ करने के पूर्व योगवाही लोच किया हुआ, और वसति शुद्ध किया हुआ उपकरण आदि को धोया हुआ होना चाहिए इसका निर्देश दिया गया है। योगारम्भ के योग्य दिन, वार, नक्षत्रादि की शुद्धि का वर्णन किया गया है। श्रुत, श्रुतस्कन्ध, अध्ययन, शतक, वर्ण, उद्देशकादि की परिभाषाएँ दी गई हैं। आगाढ़, अनागाढ़, कालिक, उत्कालिक सूत्रों पर विचार किया गया है। साथ ही कालग्रहण की विधि एवं स्वाध्यायप्रस्थापन की विधि कही गई हैं। इसमें योगोद्वहन के प्रारंभ में एवं समाप्ति में, श्रुतस्कन्ध के आरंभ में एवं समाप्ति में जो नन्दि क्रिया होती है उसकी विधि भी कही गई है । तदनन्तर क्रमशः आवश्यकसूत्र, दशवैकालिकसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, आचारांगसूत्र, सूत्रकृ तांगसूत्र, व्यवहारसूत्र, दशाश्रुतस्कंधसूत्र, ज्ञाताधर्मकथासूत्र, प्रश्नव्याकरणसूत्र, विपाकसूत्र, उपांगसूत्र, प्रकीर्णकसूत्र, महानिशीथसूत्र एवं भगवतीसूत्र की योगतप विधि का वर्णन किया गया है। इन सूत्रों की योगविधि के अन्तर्गत प्रत्येक सूत्र के दिन, खमासमण कायोत्सर्ग, मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन, कालग्रहण आदि कितने-कितने होते हैं? इनका भी विवेचन किया गया है। ६. वाचना-ग्रहण विधि इस उदय में वाचना लेने योग्य अर्थात् अध्ययन करने योग्य मुनि के लक्षण, वाचना देने योग्य अर्थात् अध्यापन कराने योग्य गुरु के लक्षण, वाचना सामग्री के लक्षण बताते हुए वाचना की विधि कही गई है। इसके साथ ही वाचना ( अध्ययन ) का क्रम बतलाते हुए कहा है कि - प्रथम दशवैकालिकसूत्र, फिर आवश्यकसूत्र, फिर उत्तराध्ययनसूत्र - उसके पश्चात् जिस क्रम से योगवहन करने का निर्देश दिया गया है उस क्रम से वाचना का आदान-प्रदान करना चाहिए। ७. वाचनानुज्ञा विधि - इस उदय में वाचनाचार्य पद पर स्थापित करने योग्य मुनि के लक्षण एवं वाचनाचार्य पद के लिए शुभ तिथि, वार, नक्षत्र, लग्नादि की चर्चा करते हुए वाचनाचार्य पद स्थापना की विधि वर्णित की गई है | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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