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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/193 (ख) साधु जीवन से सम्बन्धित विधि-विधान इसमें साध जीवन से सम्बन्ध रखने वाले सोलह प्रकार के विधि-विधान प्रतिपादित हुये हैं उनका सामान्य स्परूप इस प्रकार है १. ब्रह्मचर्यव्रत-ग्रहण विधि - इसमें ब्रह्मचर्यव्रत पालन करने के योग्य कौन हो सकता है? उस अधिकारी व्यक्ति के लक्षण बताये गये हैं साथ ही ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण की विधि बतलायी गई है। २. क्षुल्लकत्वदीक्षा ग्रहण विधि - इस उदय में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण करने की विधि बतायी गयी है, साथ ही इसमें कहा गया हैं कि जिसने तीन वर्ष पर्यन्त त्रिकरण की शुद्धिपूर्वक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन किया हो वही क्षुल्लक दीक्षा के योग्य होता है। क्षुल्लक दीक्षा लेने वाला शिखाधारी या मुण्डित मस्तक वाला होता है ऐसा भी इस कृति में उल्लेख है। ३. प्रव्रज्या-ग्रहण विधि - इस उदय में अठारह दीक्षा ग्रहण करने की विधि प्रतिपादित है। इसके साथ ही दीक्षा के लिए अयोग्य अठारह प्रकार के पुरुष, बीस प्रकार की स्त्रियाँ एवं दस प्रकार के नपुंसक की चर्चा की गई हैं। दीक्षा के लिए योग्य दिन-वार नक्षत्रादि का उल्लेख किया गया है तथा शिष्य का नया नामकरण सप्त शुद्धि को देखकर करना चाहिए ऐसा निर्देश भी दिया गया है। इतना ही नहीं जिनकल्पियों की दीक्षा विधि का वैशिष्ट्य बताते हुए कहा गया है कि जिनकल्पी मुनि दीक्षा के समय चोटी (अट्टा) ग्रहण के स्थान पर सम्पूर्ण केश लोच करते हैं, वेश ग्रहण के स्थान पर तृणमय एक वस्त्र और मयूरादि पिच्छ का रजोहरण रखते हैं तथा पाणि पात्र अर्थात् हाथ में भोजन करते हैं। ४. उपस्थापना विधि - इस उदय में उपस्थापना अर्थात् पंचमहाव्रत आरोपण करने की विधि प्ररूपित की गयी है। उपस्थापना करने के पूर्व आवश्यकसूत्र, दशवैकालिकसूत्र एवं मांडली के योग अवश्य करवाने चाहिए, उसमें भी प्रज्ञाहीन की उपस्थापना दशवकालिक सूत्र के चार अध्ययन पढ़ाये बिना नहीं करनी चाहिए, ऐसा विशेष उल्लेख किया गया है तथा उपस्थापना के लिए शुभ दिन-नक्षत्रादि का वर्णन किया गया हैं। ५. योगोद्वहन विधि - इस उदय में योग शब्द की परिभाषा बताते हुए योगवहन योग्य साधू के लक्षण, योगवहन कराने वाले गुरु के लक्षण, योगवहन में सहायक बनने वाले साधु के लक्षण, योगवहन योग्य क्षेत्र, वसति एवं स्थण्डिल के लक्षणों की चर्चा की गई हैं। इसके साथ ही योगवहन में उपयोगी उपकरण एवं योगवहन करने योग्य काल (समय) बताया गया है। फिर ५३ श्लोकों में गणियोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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