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192 / संस्कार एवं व्रतारोपण सम्बन्धी साहित्य
सुदेव - सुगुरु- सुधर्म का स्वरूप तथा कुदेव - कुगुरु-कुधर्म का स्वरूप भी बताया गया है। उसके बाद देशविरतिसामायिकव्रत ग्रहण करने की विधि, बारहव्रत ग्रहण करने की विधि, ग्यारह प्रतिमाओं को ग्रहण करने की विधि निर्दिष्ट की गई हैं। तदनन्तर श्रुतसामायिक ग्रहण करने की विधि का निरूपण किया गया है इसमें योगोद्वहन रूप उपधान विधि का भी प्रतिपादन किया गया है। इसके साथ ही इसमें सात प्रकार के उपधान की सामाचारी एवं उनकी तपविधि भी वर्णित की गयी है।
तत्पश्चात् प्रसंगानुरूप श्रावक की दिनचर्या का सुन्दर विवचेन किया गया है। अर्हत्कल्प के अनुसार श्रावक की पूजाविधि विस्तारपूर्वक कही गई है। जिसमें अष्ट प्रकार के द्रव्यादि को पवित्र करने के मन्त्र भी दिये गये हैं इस कल्प में जिन प्रतिमा की पूजा के साथ नवग्रहपट्ट पूजा एवं लोकपालपट्ट पूजा करने का भी विधान प्रस्तुत किया गया है।
१६. अन्त्य - संस्कार विधि - इस अधिकार में किसी श्रावक का कालधर्म होने पर उसके अन्तिम संस्कार को सम्पन्न करने की विधि कही गई है। इसके पूर्व अन्तिम आराधना करने की विधि का विवेचन किया गया है उसमें अन्तिम आराधना हेतु अनशन (संलेखना ) आदि का ग्रहण कहाँ करे, कब करें, किसके समक्ष करें, और किस प्रकार करें इत्यादि की सम्यक् चर्चा की गई है। इसके साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि अन्तिम आराधना की विधि को सम्पन्न करने वाला श्रावक सभी जीवों से क्षमायाचना करें, पूर्वभवो में किये गये पापों का मिथ्यादृष्कृत दें, सम्यक्त्वव्रत सहित बारहव्रत को स्वीकार करें, तथा अरिहंत, सिद्ध, साधु और धर्म इन चार की शरण ग्रहण करें। प्रस्तुत विधि के अन्तर्गत अन्तिम संस्कार करने के सम्बन्ध में यह कथन किया गया है कि यह संस्कार श्रावक या जैन ब्राह्मण द्वारा सम्पन्न किया जाना चाहिए। इसके साथ ही चारों वर्णों के अनुसार अन्तिम संस्कार करने की विधि दिखलायी गई है। अमुक-अमुक नक्षत्रों में मरण होने पर कुश के पुतलें आदि बनाने का भी निर्देश दिया गया है। अग्नि संस्कार के बाद चिता की भस्म एवं अस्थियों का विसर्जन तथा शोक का निवारण कैसे करें इसका भी उल्लेख किया है। साथ ही मृतक को स्नान कराने के समय किन-किन नक्षत्रों का त्याग करें तथा किन-किन वारों में प्रेत सम्बन्धी क्रिया करें इसका भी प्रतिपादन किया गया है।
इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थ में यह भी प्रतिपादित है कि मृत्यु के पश्चात् कितने दिन का सूतक हो, गर्भपात में कितने दिन का सूतक हो, बालक की मृत्यु होने पर कितने दिन का सूतक हो इत्यादि। अन्त में अपने-अपने वर्ण के अनुसार सूतक के कल्याण रूप परमात्मा की स्नात्रपूजा एवं साधर्मिक वात्सल्य करने का निर्देश किया गया है।
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