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________________ विधान ही इसमें वर्णित है । इस पुस्तक में अपने नाम के अनुसार पर्व दिनों एवं प्रचलित तपों में करने योग्य देववंदन विधियाँ ही मुख्यतः दी गई हैं। उनकी परम्परा में दीक्षित प्रवर्तिनी खांति श्री जी के द्वारा इस कृति का लेखन और संकलन किया गया है। तपाराधकों की दृष्टि से यह कृति महत्त्वपूर्ण है। इस कृति में निम्न विधियाँ संकलित हैं - जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 171 १. नवपद ओलीत्तप विधि २. नवपद ओली में करने योग्य देववंदनविधि ३. नवपद ओली में करने योग्य चैत्यवंदनविधि ४. अरिहंतपद आराधनाविधि ५. प्रत्याख्यान पारने की विधि ६. आयंबिल करने के बाद चैत्यवंदन करने की विधि ७. नवपद ओली में दूसरे दिन से लेकर नौ दिन तक करने योग्य विधि ८. बीश स्थानक तप करने की विधि ६. ज्ञानपंचमीतप विधि १०. दीपावली देववंदन' विधि ११. आषाढ़ - कार्तिक एवं फाल्गुन इन तीन माह की शुक्ला चतुर्दशी के दिन देववंदन' करने की विधि १२. अक्षयनिधितप विधि एवं देववंदन विधि १३. वर्धमानतप विधि एवं उसकी देववंदन विधि १४. दस प्रत्याख्यानतप विधि १५. क्षीरसमुद्रत विधि १६. पोषदशमीतप विधि १७ वर्षीतप विधि १८. मेरूत्रयोदशीतप विधि १६. पंचकल्याणक तप विधि २०. चंदनबालातप विधि २१ सिद्धाचल तप विधि २२. अष्टापदतप विधि । देववंदनमाला (विधि सहित) यह एक संकलित कृति है, जो गुजराती में हैं। इसमें तपागच्छीय परम्परा में प्रवर्तित देववंदन की विधियों का उल्लेख हुआ है। मुख्यतः इस कृति में पृथक्-पृथक् पर्व दिनों की अपेक्षा छह प्रकार की देववंदन विधि दी गई है। इसमें भिन्न-भिन्न रचनाकारों की अपेक्षा मौनएकादशी पर्व से सम्बन्धित दो प्रकार की देववंदन विधि, चैत्रीपूनम पर्व से सम्बन्धित दो प्रकार देववन्दन विधि की एवं चौमास पर्व से सम्बन्धित चार प्रकार की देववंदन विधि वर्णित की गई है। प्रस्तुत कृति में उल्लिखित देववंदन विधियों का नामोल्लेख इस प्रकार है१. दीपावली पर्व के दिन करने योग्य देववन्दन विधि- इसकी रचना ज्ञानविमल सूरि ने की है । २. ज्ञानपंचमी पर्व के दिन करने योग्य देववंदन विधि - यह देववंदन विजयलक्ष्मीसूरि द्वारा निर्मित है। इसमें पाँच ज्ञान का सुन्दर वर्णन किया गया है। साथ ही ज्ञानावरणीयादि कर्मों का बंधन कैसे होता है? इत्यादि का ,, दीपावली के देववंदन हर्षचंद्रगणि विरचित है। २ चौमासी के देववंदन सागरचंद्रसूरि रचित है। ' यह पुस्तक जैन श्वे. कारखाना पेढी महुडी ता. बिजापुर से प्रकाशित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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