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________________ 172 / विविध तप सम्बन्धी साहित्य निरूपण भी किया गया है । ३. मौन एकादशी पर्व के दिन करने योग्य देववन्दनविधि पहली देववंदन विधि पं. रूपविजयजी द्वारा रचित है। उसमें वर्तमान चौबीसी, अतीत चौबीसी और अनागत चौबीसी के कुल १५० कल्याणक हुये हैं उनका स्वरूप प्रतिपादित है। दूसरी देववंदनविधि - श्रीज्ञानविमलसूरि विरचित ४. चैत्रीपूनम पर्व के दिन करने योग्य देववन्दनविधि- पहली रचना दानविजयजी की है। उसमें शत्रुंजयतीर्थ की महिमा, चैत्रीपूनम की महिमा एवं पाँच करोड़ मुनिवरों के साथ पुंडरीक गणधर ने चैत्री पूनम के दिन सिद्धि पद को प्राप्त किया इत्यादि का वर्णन है। दूसरी देववंदनविधि - श्रीज्ञानविमलसूरि कृत है। ५. चौमासी पर्व के दिन करने योग्य देववंदनविधि- प्रथम रचना पं. श्री वीरविजयजी की है। इसमें २४ तीर्थंकरों के चैत्यवंदन दिये गये हैं साथ ही पहले, सोलहवे, बाईसवें, तेइसवें और चौबीसवें इन पाँच तीर्थंकरों के स्तवन - स्तुति सहित चैत्यवंदन दिये गये हैं। अन्त में शाश्वत - अशाश्वत जिन प्रतिमाओं तथा सिद्धाचल आदि तीर्थों के स्तवन वर्णित हैं। इसके अतिरिक्त चौमासी सम्बन्धी अन्य तीन देववंदन विधियाँ दी गई हैं। वे क्रमशः पं. पद्मविजयजी विरचित, श्री ज्ञानविमलसूरि विरचित तथा बुद्धिसागरसूरि द्वारा विरचित है। ६. एकादश गणधर देववंदन विधि- ये देववंदन श्री ज्ञानविमलसूरि ने बनाये हैं। इसमें चरम तीर्थाधिपति श्री महावीर स्वामी के ग्यारह गणधरों का विवेचन है। इसमें कहा गया है कि ज्ञानपंचमी का देववंदन कार्तिकसुदि पंचमी, चौमासी देववंदन कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी, फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी तथा आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी ऐसे वर्ष में तीन बार, मौनएकादशी का देववंदन मिगसरशुक्ला एकादशी, चैत्रीपूनम का देववंदन चैत्रशुक्ला पूर्णिमा तथा दीपावली का देववंदन आसोजकृष्णा अमावस्या के दिन किये जाते हैं। ये देववंदन उपाश्रय में समुदाय के साथ किये जाते हैं। निष्कर्षतः यह कृति देववंदन विधि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । तपागच्छीय परम्परा में ये देववंदन विधियाँ विशेष रूप से प्रचलित एवं प्रवर्तित हैं। नमो-नमो नाण दिवायरस्स यह कृति' ज्ञान पंचमी की आराधना विधि से सम्बन्धित हैं तथा गुजराती गद्य-पद्य में निर्मित है। इसका आलेखन पं. प्रद्युम्नविजय गणि ने किया है। वस्तुतः यह एक संकलित एवं संपादित कृति हैं। ज्ञानपंचमीतप आराधना विधि की कई पुस्तकें प्रकाशित हुई है किन्तु इसकी अपनी मूल्यवत्ता है। १ यह वि.सं. २०४७ में, श्री श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अहमदाबाद से प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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