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________________ 170/विविध तप सम्बन्धी साहित्य दशलाक्षणिकव्रतोद्यापन ___ इसके रचयिता' अभयनन्दी के शिष्य सुमतिसागरजी है। इसका प्रारम्भ 'विमलगुणसमृद्ध' से किया गया है। इसमें क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य इन दस प्रकार के धर्मों के विषय में एक-एक पूजा और उसके अन्त में समुच्चय जयमाला इस प्रकार विविध विषय आते हैं। जयमाला के अतिरिक्त समग्र ग्रन्थ प्रायः संस्कृत में है। दशलक्षणव्रतोद्यापन यह रचना ज्ञानभूषणजी की है। इसे दशलक्षणोद्यापन भी कहते हैं। इसमें क्षमा आदि दस धर्मांगों के विषय में जानकारी दी गई है। अनुमानतः इसमें दसधर्मों का व्रत विधान होना चाहिए। देववंदन तपमाला यह पुस्तक मूलतः हिन्दी पद्य में है। इसका संपादन रामचन्द्रसूरि के वंशज गणि श्री रत्नसेनविजयजी ने किया है। इनके द्वारा रचित अनेक कृतियाँ वर्तमान में उपलब्ध हैं। आज की प्रगतिशील युवापीढ़ी में इनकी पुस्तकों का अच्छा प्रभाव छाया हुआ है। इन्होंने प्रस्तुत पुस्तक में छः प्रकार की देववन्दन विधि उल्लिखित की है। उनके नाम निम्न हैं - १. देववंदन की सामान्य विधि- सभी प्रकार के तपों में करने योग्य देववन्दन विधि २. दीपावली देववंदनविधि ३. ज्ञानपंचमी देववंदनविधि ४. चौमासी देववंदनविधि ५. मौनएकादशी देववंदनविधि ६. चैत्रीपूर्णिमा देववंदनविधि ___ यह कृति तपागच्छ परम्परा से सम्बन्धित है तथा गृहस्थ एवं मुनि दोनों के लिए विशेष उपयोगी है। देववंदनमाला . यह एक संकलित पुस्तिका है। इस पुस्तक की कुछ विधियाँ मुनियों द्वारा रची गई हैं। उनके नामों का उल्लेख आगे करेंगे। यह कृति गुजराती गद्य एवं पद्य मिश्रित भाषा में है। पार्श्वचन्द्रगच्छ की परम्परानुसार किये जाने वाले . 'जिनरत्नकोश पृ. १६८ २ वही पृ. १६८ ३ यह पुस्तक 'दिव्य संदेश प्रकाशन-अंधेरी (ईस्ट) मुंबई' से प्रकाशित है। ४ यह पुस्तक वि.सं. २०३६ में, हंसराज माणेक मोटी खाखर से प्रकाशित हुई है। यह तीसरा संस्करण है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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