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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/145 पंचप्रतिक्रमणसूत्र (सार्थ एवं विधिसहित) यह कृति हिन्दी में है।' सूत्रपाठ की शैली प्राकृत व संस्कृत है। इसमें खरतरगच्छ के परम्परानुसार पंचप्रतिक्रमण में उपयोगी सूत्रों का संकलन किया गया है। साथ ही वे सूत्र अर्थ सहित एवं विधिसहित दिये गये हैं। इसमें सामायिक-प्रतिलेखन आदि की विधियाँ भी कही गई हैं साथ ही स्तुति, स्तवन, सज्झाय आदि का उपयोगी संग्रह भी समाविष्ट किया है जो प्रतिक्रमण करने वाले साधकों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। पडिक्कमणसामायारी प्रतिक्रमणसामाचारी यह जिनवल्लभगणि की जैन महाराष्ट्री प्राकृत में रचित ४० पद्यों की कृति है। इसमें प्रतिक्रमण विधि सम्बन्धी विचारणा की गई है। यह सामाचारीशतक के पत्र क्रमांक १३७ अ से १३८ आ तक उद्धृत की गई है। प्रतिक्रमण विधि यह कृति वि.सं.१५२५ में तपागच्छीय श्री जयचन्द्र के शिष्य जिनहर्ष ने रची है। प्रतिक्रमणग्रन्थत्रयी इसके कर्ता मुनिप्रभचन्द्र है। यह १८०० श्लोक परिमाण है। प्रतिक्रमणहेतुगर्भः सोमसुंदरसूरि के शिष्य जयचन्द्रसूरि रचित यह कृति संस्कृत गद्य में निबद्ध है। इस ग्रन्थ का रचनाकाल १६ वीं शती का पूर्वार्ध है। यह रचना खरतरगच्छीय मोहनलालजी समुदाय के मुनि बुद्धिसागरगणि के द्वारा संशोधित की गई है। ' यह पुस्तक - जैन साहित्य प्रकाशन समिति, ३६ बड़तल्ला स्ट्रीट, कलकत्ता-७, वि.सं. २०३६ में प्रकाशित हुई है। २ (क) यह संशोधित कृति वि.सं. २०१२ में 'जिनदत्तसूरिज्ञानभंडार, महावीरस्वामी देरासर, पायधुनी मुंबई' से प्रकाशित है। (ख) यह कृति 'प्रतिक्रमणगर्भहेतु' नाम से श्री पानाचन्द वहालजी ने सन् १८६२ में प्रकाशित की है। इसका प्रतिक्रमणहेतु' नाम से गुजराती सार 'जैन धर्म प्रसारक सभा' ने सन् १६०५ में प्रकाशित किया था। (ग) इस कृति का मूल नाम 'प्रतिक्रमणविधि' है किन्तु यह 'प्रतिक्रमणगर्भहेतु' और 'हेतुगर्भप्रतिक्रमण' के नाम से भी प्रसिद्ध है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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