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146/षडावश्यक सम्बन्धी साहित्य
प्रस्तुत ग्रन्थ अपने नाम के अनुसार प्रतिक्रमण विधि के हेतुओं (उद्देश्यों) का विवेचन करता है। इस कृति की संशोधित प्रति की प्रस्तावना में यह लिखा गया है कि इस दुषम काल में भगवान महावीर के शासन में चाहे किसी प्रकार का अतिचार या दोष लगे या नहीं लगे, किन्तु साधु एवं श्रावकों के लिए प्रतिक्रमण करना अनिवार्य है। प्रतिक्रमण किस उद्देश्य से किया जाता है तथा प्रतिक्रमण की कौनसी क्रिया का क्या हेतु है? यह बताने के लिए ही यह ग्रन्थ गुम्फित हुआ, ऐसा मालूम होता है। इस दृष्टि से देखें, तो इस ग्रन्थ में विषय का स्पष्टीकरण करने के लिए अन्य ग्रन्थों से साक्ष्य पाठ भी उद्धृत किये गये हैं। ये उद्धृत पाठ प्रायः प्राकृत में हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचरण एवं ग्रन्थ रचना का प्रयोजन बताने हेतु एक श्लोक दिया गया है। उसमें वर्द्धमानस्वामी को और गुणों से महान् गुरू को नमस्कार किया गया है तथा प्रतिक्रमणविधि के हेतुओं को स्पष्ट करने की प्रतिज्ञा की गई है। अन्त में प्रशस्ति रूप तीन पद्य हैं। इनके अतिरिक्त अन्तिम भाग में प्रतिक्रमण अर्थात् आवश्यक के आठ पर्यायवाची नामों के विषय में एक-एक दृष्टान्त दिया गया है। इस ग्रन्थ के पत्र २४ और २५ में आये हुए उल्लेख के अनुसार ये दृष्टान्त आवश्यक सूत्र की लघुवृत्ति मे से उद्धृत किये गये हैं। मुख्यतया इस कृति में प्रतिक्रमणविधि के हेतुओं के सम्बन्ध में प्रश्न उठाते हुए उनका समाधान किया गया है। इसके साथ ही तद्विषयक अन्य चर्चाएँ भी प्रतिपादित हुई हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रतिक्रमण को लेकर निम्न प्रश्न उठाये गये हैं; जैसे कि स्थापनाचार्य के समक्ष ही प्रतिक्रमणादि विधान क्यों? प्रतिक्रमण की आराधना क्यों? सामायिक करने से जीव क्या प्राप्त करता है? प्रतिक्रमण करने का काल कौन सा है? प्रतिक्रमण के प्रारम्भ में देववन्दन क्यों किये जाते हैं? इत्यादि कई विषयों को सोद्देश्य प्रस्तुत किया है।
इनके सिवाय कायोत्सर्ग के नौ प्रकार, कायोत्सर्ग के उन्नीस दोष, मुखवस्त्रिका एवं शरीर प्रतिलेखना के पच्चीस-पच्चीस बोल, वन्दना के पच्चीस आवश्यक, वन्दना के बत्तीस दोष, प्रायश्चित्त के दस प्रकार, वन्दना के आठ स्थान, प्रतिक्रमण का फल, प्रतिक्रमण में क्रिया-कर्ता-कर्म, ईर्यापथिक प्रतिक्रमण द्वारा १८२४२० जीवों से मिच्छामि दुक्कडं, रात्रिक प्रतिक्रमण को मन्द स्वर से करना, पाक्षिक क्षमायाचना, छह आवश्यकों की पंचाचार के साथ तुलना आदि ये सभी विषय भी व्याख्यायित हुए हैं। प्रतिक्रमण के आठ पर्यायवाची शब्दों को विस्तार से समझाया गया है। इनमें से प्रारम्भ के सात पर्यायवाची शब्दों की
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