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________________ 126/साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य अधिक विस्तार के साथ मिलते हैं। ‘क्रियास्थान' नामक दूसरे अध्ययन में अर्थदण्ड आदि तेरह क्रियास्थानों का स्वरूप बताते हुए उनके त्याग की रीति कही गई है। 'आहारपरिज्ञा" नामक तीसरे अध्ययन में आत्मार्थी भिक्षु को निर्दोष आहार-पानी की एषणा किस प्रकार करनी चाहिए? उसकी विधि बतायी गयी है। 'प्रत्याख्यान क्रिया' नामक चौथे अध्ययन में पात्रों की अपेक्षा त्याग, प्रत्याख्यान, व्रत एवं नियम ग्रहण की सामान्य विधि निर्दिष्ट है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध का पाँचवां अध्ययन 'अनाचारश्रुत' का है इसमें त्याज्य वस्तुओं की गणना की गई है तथा लोकमूढ़ मान्यताओं का खण्डन किया गया है। 'नालन्दा' नामक सातवें अध्ययन में इन्द्रभूति गौतम द्वारा नालान्दा में दी गई उपदेश विधि अंकित है।सूत्रकृतांगसूत्र का भलीभाँति अवलोकन करते हैं तो स्पष्ट होता है कि यह ग्रन्थ दार्शनिक चिनतन प्रधान अवश्य है तथापि इसमें आचारपक्ष की भी बहुलता है। इसमें यत्र-तत्र विधि-विधान के प्रारम्भिक रूप भी समाहित है। साधुदिनकृत्य इसके रचयिता तपागच्छीय चारित्रविजयजी के शिष्य श्री हरिप्रभसूरि है। यह कृति संस्कृत के ४२२ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचनाकाल अज्ञात है। इसमें मुनि जीवन की अहोरात्रिकचर्या का सूक्ष्म विवेचन हुआ है, जैसे प्रातः काल उठने की विधि, जाप करने की विधि, जगने का काल, प्रथम चैत्यवन्दन विधि, प्राभातिक कालीन विधि, रात्रिकप्रतिक्रमण विधि, प्रतिलेखन विधि, उघाड़ापोरिसी विधि, आहार ग्रहण विधि, स्थंडिल विधि, स्थंडिलशोधन विधि, स्थंडिल के प्रकार, भेद, सांयकालीन प्रतिक्रमण विधि, उपधि के प्रकार, उपधि की संख्या, आदि सभी प्रकार के विधि-विधान उल्लिखित हुये हैं तथा इनसे सम्बन्धित अन्य विषयों का भी निरूपण हुआ है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचारण रूप दो श्लोक हैं अन्त में तीन श्लोक प्रशस्ति रूप में है। संयमीनो प्राण (अचलगच्छीय अणगारस्य प्रतिक्रमण सामाचारी सार्थ) यह पुस्तक अचलगच्छीय परम्परानुसार अनुष्ठित किये जाने वाले विधि-विधानों से सम्बन्धित है। इस कृति में मुख्यतः श्रमणजीवन की आवश्यक एवं दैनिक क्रियाओं का प्रतिपादन है। प्रस्तुत कृति में श्रमण द्वारा प्रतिक्रमण एवं - 'सूत्रकृतांग सू. ७५६ . २ पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज, जामनगर, वि.सं. १६७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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