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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/119 १२,५०० श्लोक परिमाण है। दूसरी टीका श्री मेघचन्द्राचार्य ने लिखी है वह 'मुनिजनचिन्तामणी' नाम से कन्नड़भाषा में निबद्ध है और १४०३ श्लोक परिमाण है। जइसामायारी-यतिसामाचारी _ 'यतिसामाचारी' नामक यह कृति वि.सं. १४१२ में पार्श्वनाथ चरित्र के रचयिता और कालकाचार्य के सन्तानीय श्री भावदेवसूरि द्वारा संकलित की गई है। यह रचना जैन महाराष्ट्री प्राकृत भाषा में है। इसमें कुल १५४ गाथाएँ हैं। यह एक संक्षिप्त रचना है ऐसा इस ग्रन्थ की प्रथम गाथा में कहा गया है। देवसूरि नामक अन्य आचार्य ने इसी नाम की एक कृति रची है वह अति विस्तृत है। इस कृति के रचयिता भावेदवसूरि द्वारा 'अलंकारसार' नामक ग्रन्थ भी लिखा गया है। यह रचना वि.सं. १५ वीं शती के पूर्वार्ध की मानी जाती है। सामान्यतः उत्तराध्ययन, ओघनियुक्ति, पिंडनियुक्ति आदि ग्रन्थों में साधु सामाचारी का सम्यक् निरूपण हुआ है परन्तु उनमें साधु सामाचारी से सम्बन्धित विविध पक्षों की चर्चा है जबकि प्रस्तुत कृति जैन मुनियों की दिनचर्या पर प्रकाश डालती है। मूलतः इस कृति में प्रातःकालीन जागरण विधि से लेकर रात्रिकालीन संस्तारक (शयन) पर्यन्त विधियों एवं आवश्यक क्रियाओं का प्रतिपादन हुआ है अतः यह कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ साधु जीवन की क्रियाओं और अनुष्ठानों का एक संक्षिप्त कोश रूप है। इस ग्रन्थ की प्रथम गाथा मंगलाचरण से सम्बन्धित है। उसमें भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है उसके बाद साधुजनों के हित के लिए आगम के अनुसार, सामाचारी लिखने की प्रतिज्ञा की गई है। इस ग्रन्थ के अन्त की दो गाथाएँ प्रशस्ति रूप हैं, उनमें यह कहा गया है कि यतिसामाचारी का पालन करने वाल शिवसुख को प्राप्त करता है साथ ही ग्रन्थकर्ता ने स्वयं का और स्वयं के गुरु का नाम भी उल्लेखित किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में निर्दिष्ट विषयों एवं विधियों का अनुक्रम निम्न हैं - १. देवगुरु के स्मरणपूर्वक निद्रा का त्याग करना। २. परमेष्ठीमंत्र के स्मरण रूप स्वाध्याय करना ३. आत्म धर्म का चिन्तन करना ४. रात्रि के समय उच्चस्वर से 'यह नाम पहली गाथा में दिया गया है जबकि अन्तिम गाथा में 'जइदिणचरिया' ऐसा नाम आता है। ‘पंचासग' के बारहवें पंचासग का नाम भी जइसामायारी है। 'यतिदिनचर्या' के नाम से मतिसागरसूरिकृत व्याख्या के साथ प्रथम संस्करण के रुप में 'ऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेताम्बर संस्था' द्वारा सन् १६३६ में प्रकाशित हुआ है। दूसरा संस्करण सन् १६६७ में मुद्रित हुआ है। इसका श्लोक परिमाण १६२ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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