SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 118/साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य ७. षड़ावश्यकाधिकार- इसमें आवश्यक शब्द का अर्थ बतलाकर सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग इन छह आवश्यक क्रियाओं का विस्तार से वर्णन है। ८. द्वादशानुप्रेक्षाधिकार- इसमें बारह अनुप्रेक्षाओं का विधिवत् वर्णन है। ६. अनगारभावनाधिकार- इसमें मुनियों की उत्कृष्ट चर्या का प्रतिपादन है उसमें लिंग, व्रत, विहार, भिक्षा, ज्ञान, शरीर-संस्कार-त्याग, वचन, तप और ध्यान सम्बन्धी दस शुद्धियों का वर्णन हुआ है तथा अभ्रावकाश आदि योगों का भी निरूपण हुआ है। १०. समयसाराधिकार- इसमें चारित्रशुद्धि के हेतुओं का कथन है। चार प्रकार के लिंग का और दश प्रकार के स्थितिकल्प का भी अच्छा विवेचन है। ११. शीलगुणाधिकार- इसमें साधु के १८ हजार शील के भेदों का सविस्तार प्रतिपादन हुआ है। साथ ही ८४ लाख उत्तरगुणों का भी वर्णन हुआ है। १२. पर्याप्तिअधिकार- इसमें जीव की छह पर्याप्तियों को बताकर संसारी जीव के अनेक भेद-प्रभेदों का कथन किया है क्योंकि जीवों के नाना भेदों को जानकर ही उनकी रक्षा की जा सकती है। अनन्तर कर्म प्रकृतियों के क्षय का विधान है। इस प्रकार स्पष्ट होता हैं कि यह मूलाचार साधु जीवन की आचारविधि-साधनाविधि का प्रतिनिधि ग्रन्थ तो है ही, साथ ही तद्विषयक अन्य अनेक तथ्यों का निरूपक भी है। यह एक संग्रहात्मक कृति भी प्रतीत होती है इसका कारण यह हो सकता है कि ग्रन्थकार वट्टकेर ने कुन्दकुन्दाचार्य के ग्रन्थों में से एवं आवश्यकनियुक्ति में से गाथाएँ उद्धृत की है। तदुपरान्त भी यह अपने समय का एक प्रामाणिक और सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ रहा है। इस ग्रन्थ की प्रमाणिकता और प्राचीनता को सिद्ध करने वाले कई तथ्य दृष्टिगत होते हैं, जैसे कि जैन साहित्य का गंभीर आलोकन करने वाले आचार्य वीरसेन ने 'षटखण्डागम' ग्रन्थ पर रची गयी अपनी सुप्रसिद्ध 'धवला' टीका (७८० ई.) में मूलाचार का आचारांग नाम देकर उसका आगमिक महत्व प्रदर्शित किया है। शिवार्य (प्रथम शती ई.) कृत 'भगवती आराधना' की अपराजितसूरि विरचित विजयोदया टीका (लगभग ७०० ई.) में मूलाचार के कतिपय उद्धरण प्राप्त हैं और यतिवृषभाचार्य (६ ठी शती ई.) कृत 'तिलोयपण्णति' में भी मूलाचार का नामोल्लेख हुआ है। टीकाएँ- इस ग्रन्थ पर दो टीकाएँ लिखी गई है। एक टीका सिद्धांत चक्रवर्ती श्रीवसुनन्दि आचार्य ने रची है। इस टीका का नाम 'आचारवृत्ति' है और यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy