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________________ जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/113 आहार ग्रहण करना छर्दित दोष है (६२७-२८)। मांडली दोष- ये दोष पाँच कहे गये हैं। १. संयोजनादोष- स्वाद के लिए प्राप्त वस्तुओं को मिलाना संयोजना दोष है। २. अपरिमाणदोष- परिमाण से अधिक भोजन लेना। ३. अंगारदोष- आहार या दाता की प्रशंसा करते हुए भोजन करना। ४. धूमदोष- आहार या दाता की निन्दा करते हुए भोजन करना। ५. अकारण दोष- शास्त्र में कहे गये ६ कारण के अतिरिक्त भोजन करना (६३६-६७)। इस प्रकार पिण्डनियुक्ति में श्रमण की आहारविधि के सम्बन्ध में सम्यक् चिन्तन किया गया है। इस नियुक्ति पर आचार्य मलयगिरि ने बृहद्वृत्ति और वीराचार्य ने लघुवृत्ति की रचना की है। दशवैकालिकवृत्ति चूर्णि साहित्य के पश्चात् संस्कृत भाषा में टीकाओं का निर्माण हुआ। यहाँ पुनः ज्ञातव्य हैं कि नियुक्ति में शब्दों की व्याख्या और व्युत्पत्ति होती हैं। भाष्य में गम्भीर भावों का विवेचन होता है। चूर्णि में निगूढ़ भावों को लोककथाओं तथा ऐतिहासिक वृत्तों के आधार पर समझाने का प्रयत्न होता है जबकि टीका में दार्शनिक दृष्टि से विश्लेषण होता है। टीका के अनेक पर्यायवाची नाम उपलब्ध होते हैं, जैसे- टीका, वृत्ति, निवृत्ति, विवरण, विवेचन, व्याख्या, वार्त्तिक, दीपिका, अवचूरि, अवचूर्णि, पंजिका, टिप्पणक, पर्याय, स्तवक, पीठिका, अक्षरार्द्ध आदि।। संस्कृत टीकाकारों में आचार्य हरिभद्र का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। इन्होंने दशवैकालिक, आवश्यक आदि सात आगमों पर टीकाएँ रची हैं। दशवैकालिकवृत्ति का नाम शिष्यबोधिनी है। इसे बृहवृत्ति भी कहते हैं। यह टीका दशवैकालिक नियुक्ति पर रची गई है।" ___निष्कर्षतः दशवैकालिकसूत्र और उस पर लिखा गया व्याख्यासाहित्य साधक (श्रमण) जीवन के लिए अत्यन्त ही उपयोगी प्रतीत होता है। इस आगम में साधु की दैनन्दिन आवश्यकचर्या एवं आवश्यकविधि का बहुत ही सुन्दर एवं सहेतुक विवेचन हुआ है। श्रमणवर्ग के लिए यह ग्रन्थ उत्सर्गतः पठनीय है। ' विस्तृत जानकारी हेतु देखें, जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. ३, पृ. ३३८ - ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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