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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/109
रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या की जाती है। दशवैकालिकभाष्य
___ नियुक्तियों की व्याख्या शैली बहुत ही संक्षिप्त और गूढ़ होती है जबकि भाष्य की व्याख्याशैली अपेक्षाकृत विस्तृत होती है। भाष्य भी प्रायः प्राकृत पद्य में ही होते हैं। इस भाष्य में अनेक प्राचीन अनुश्रुतियाँ, लौकिक कथाएँ और परम्परागत श्रमणों की आचार-विचार विधि तथा गतिविधियों का प्रतिपादन किया गया है। दशवैकालिक पर जो भाष्य प्राप्त है, उसमें कुल ६३ गाथाएँ है। दशवैकालिक चूर्णि में भाष्य का उल्लेख नहीं है किन्तु आचार्य हरिभद्र ने अपनी वृत्ति में भाष्य और भाष्यकार का अनेक स्थलों पर उल्लेख किया है।' दशवैकालिकभाष्य दशवैकालिकनियुक्ति की अपेक्षा बहुत ही संक्षिप्त है। दशवैकालिकचूर्णि
___ जैन आगमों पर जो व्याख्याएँ संस्कृत मिश्रित प्राकृत गद्य में लिखी गई वे चूर्णि के रूप में विश्रुत हुई हैं। चूर्णिकार के रूप में जिनदासगणि महत्तर का नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। उनके द्वारा लिखित चूर्णियाँ सात आगमों पर प्राप्त है। उनमें एक चूर्णि दशवैकालिक पर भी है। दशवैकालिक पर दूसरी चूर्णि व्रजस्वामी की पंरपरा के एक स्थविर श्री अगस्त्यसिंह की है। यह प्राकृत में है। इसमें सभी महत्वपूर्ण शब्दों की व्याख्या की गई है। इस व्याख्या के लिए उन्होंने विभाषा शब्द का प्रयोग किया है। विभाषा का अर्थ है- शब्दों में जो अनेक अर्थ होते हैं, उन सभी अर्थों को बताकर प्रस्तुत में जो अर्थ उपयुक्त हो उसका निर्देश करना। इससे स्पष्ट है कि इस चूर्णि में मूलसूत्र में निबद्ध जो विधि-विधान है उसका विस्तृत विवेचन हुआ है साथ ही तत्त्वार्थसूत्र, आवश्यकनियुक्ति, ओघनियुक्ति, व्यवहारभाष्य, कल्पभाष्य आदि ग्रन्थों का भी इसमें उल्लेख हुआ है।
जिनदासगणिमहत्तर ने इसकी चूर्णि संस्कृत मिश्रित प्राकृत भाषा में रची है। सभी अध्ययनों पर विशेष प्रकाश डाला गया है। पाँचवें अध्ययन में श्रमण के उत्तरगुण-पिण्डस्वरूप, भक्तपानैषणाविधि, गमनविधि, गोचरविधि, पानकविधि, परिष्ठापनविधि, भोजनविधि आदि पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। चूलिकाओं में रति, अरति, विहारविधि, गृहिवैयावृत्य का निषेध आदि विषयों से सम्बन्धित विवेचना है। प्रस्तुत चूर्णि में अनेक कथाएँ दी गई है, जो बहुत ही रोचक तथा विषय को स्पष्ट करने वाली है।
' (क) भाष्यकृता पुनरुपन्यक्त इति- दश. हरिभद्रीयटीका, पृ. ६४ (ख) आह च भाष्यकारः, उद्धृत दशवैकालिक सूत्र, मधुकरमुनि, प्रस्तावना पृ. ६६
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