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________________ बाल, वृद्ध, रोगी श्रमणों के लिए अठारह स्थान वर्ज्य माने हैं। उन अठारह स्थानों में सोलहवाँ स्थान 'गृहान्तरनिषद्या वर्जन' है, जिसका अर्थ है - गृहस्थ के घर में बैठना नहीं। इसका अपवाद भी इस अध्ययन की ५८ वीं गाथा में है कि जराग्रस्त, रोगी और तपस्वी साधु गृहस्थ के घर बैठ सकता है। स्पष्टतः अपवादमार्ग का प्रस्तुत अध्ययन में सहेतुक निरूपण हुआ है। - ७. वाक्य शुद्धि इस सातवें अध्ययन में साधु की आचारविधि के अन्तर्गत भाषा-विवेक पर बल दिया गया है। जैन श्रमणों के लिए गुप्ति, समिति और महाव्रत का पालन आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी माना गया है। महाव्रत में द्वितीय महाव्रत भाषा से सम्बन्धित है तो गुप्ति और समिति में भी द्वितीय गुप्ति और द्वितीय समिति भाषा से ही सम्बन्धित है। वचन - गुप्ति में मौन है और समिति में विचार युक्त वाणी का प्रयोग है। इसमें साधु के लिए वर्ज्य - अवर्ज्य भाषा का निरूपण हुआ है और कहा गया है कि साधु को कर्कश, निष्ठुर, अनर्थकारी जीवों का आघात और परिताप देने वाली भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। हमेशा हित, मित, और सत्य ही बोलना चाहिए। जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 107 ८. आचारप्रणिधि इस अध्ययन में आचारविधि का नहीं अपितु आचार की प्रणिधि का निरूपण है । आचार एक महान् निधि है । उस निधि को पाकर श्रमण किस प्रकार चले, उसका दिग्दर्शन इस अध्ययन में किया गया है। प्रणिधि का अपर अर्थ - एकाग्रता, स्थापना और प्रयोग है। श्रमण को इन्द्रियों के विकारों के प्रवाह में प्रवाहित न होकर, आत्मस्थ होना चाहिए। अप्रशस्त प्रयोग न कर प्रशस्त प्रयोग करने चाहिए। ऐसी शिक्षाएं इस अध्ययन में दी गई है। इस अध्ययन में साधना के अनेक आचरणीय पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। - Jain Education International ६. विनयसमाधि - इस अध्ययन में चार उद्देशक हैं उनमें विनय का निरूपण किया गया है। विनय का वास्तविक अर्थ है- वरिष्ठ एवं गुरुजनों का सम्मान करते हुए, उनकी आज्ञाओं का पालन करते हुए अनुशासित जीवन जीना । इस अध्ययन में विनय आचार से सम्बन्धित कई बिन्दूओं पर प्रकाश डाला गया है जैसे - १. अविनीत श्रमण के द्वारा की गयी गुरु आशातना के दुष्परिणाम, २. गुरु के प्रति विविध रूपों में विनय का प्रयोग, ३. विनय का माहात्म्य और फल, ४. अविनीत और सुविनीत के गुण-दोष, ५. लौकिक विनय और लोकोत्तर विनय, ६. विनीत साधक को क्रमशः मुक्ति की उपलब्धि, ७. विनयसमाधि के चार स्थान इत्यादि । वस्तुतः विनय आचार का पालन करना भी एक प्रकार का आध्यात्मिक अनुष्ठान है। १०. समिक्षु - इस अध्ययन में भिक्षु के स्वरूप का सम्यक् निरूपण है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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