SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 102/साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य कहलाता है। मूलसूत्रों की संख्या एवं उनके नामों के बार में विद्वानों में काफी मतभेद है किन्तु उत्तराध्ययन को सभी में एक स्वर से मूलसूत्र माना है। इसमें दो शब्द हैं उत्तर और अध्ययन। नियुक्तिकार के अनुसार ये अध्ययन आचारांग के अध्ययन के पश्चात् अर्थात् उत्तरकाल में पढ़े जाते हैं इसलिए इन्हें उत्तर अध्ययन कहा गया है।' श्रुतकेवली आचार्य शय्यंभव के पश्चात् ये अध्ययन दशवैकालिक के अध्ययन के पश्चात् अर्थात् उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे, इसलिए भी ये 'उत्तर-अध्ययन' ही बने रहे। यह ग्रन्थ किसी एक कर्ता की कृति नहीं है, अपितु संकलित ग्रन्थ है। इसका रचनाकाल दशवैकालिकसूत्र की रचना से पूर्व का है यह बात उक्त विवरण से स्पष्ट होती है। दशवैकालिक के कर्ता शय्यंभवसूरि हैं, जिनका समय वीर निर्वाण के ७५ वर्ष बाद माना जाता है। उत्तराध्ययन में ३६ अध्ययन तथा १६३८ गाथाएँ हैं। प्रत्येक अध्ययन के विषय भिन्न-भिन्न है। इसमें विधि-विधान से सम्बन्धित कुछ विवरण इस प्रकार उपलब्ध होते हैं जैसे दूसरे ‘परीषह नामक' अध्ययन में कहा गया है किसाधुजीवन में आने वाले बाईस परीषहों को किस प्रकार सहन करना चाहिये तथा उस स्थिति में साधु को क्या चिन्तन करना चाहिये इत्यादि। इन सबका इसमें मनोवैज्ञानिक ढंग से निरूपण किया गया है। वस्तुतः इस अध्ययन में 'मुनिचर्याविधि' का बहुत सूक्ष्मता से वर्णन हुआ है। पाँचवे 'क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय' नामक अध्ययन में मुनि जीवन के प्रारंभिक आचार नियमों का प्रतिपादन किया गया है। सोलहवे 'ब्रह्मचर्य समाधिनस्थान' नामक अध्ययन में ब्रह्मचर्य पालन के दस समाधिस्थान बताये गये हैं अर्थात् यह कहा गया है कि साधु को ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए किन-किन नियमों का पालन करना चाहिये। यहाँ नियम पालन करना भी एक प्रकार की विधि समझनी चाहिए। वे दस स्थान ये हैं - १. श्रमण को स्त्री, पशु एवं नपुंसक से युक्त स्थान पर नहीं रहना चाहिए। २. स्त्रियों से एकान्त में बातचीत नहीं करनी चाहिए। ३. स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए। ४. स्त्रियों की ओर दृष्टि गड़ाकर नहीं देखना चाहिए। ५. स्त्रियों के गायन, रोदन, हास्य, विलाप आदि का श्रवण नहीं करना चाहिए। ६. पूर्व क्रीडाओं का स्मरण नहीं करना चाहिए। ७. अतिगरिष्ठ आहार नहीं करना चाहिए। ८. मात्रा से अधिक भोजन नहीं करना चाहिए। ६. शरीर की साज-सज्जा या विभूषा नहीं करनी चाहिए। १०. इन्द्रियों के ' उत्तराध्ययनसूत्र-मधुकरमुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy