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________________ 100 / साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य पुष्टि के लिए बीच-बीच में अनेक प्राकृत एवं संस्कृत उद्धरण भी दिये गये हैं। भाषा, शैली, सामग्री आदि सभी दृष्टियों से विवरण को सुबोध बनाने का प्रयत्न किया है। यहाँ विवरण का विस्तृत विवेचन करना अपेक्षित नहीं है। निष्कर्षतः आचारांगनिर्युक्ति, चूर्णि और विवरण आचारांगसूत्र में वर्णित आचार मर्यादा और आचारपक्षीय विधि-विधानों को गहराई के साथ समझने के लिए परम आलम्बन रूप है। आवश्यकीयविधिसंग्रह गणिकेशरमुनि के शिष्य मुनि बुद्धिसागर' जी द्वारा संकलित की गई यह कृति' बहुउपयोगी सिद्ध होती है। यह कृति हिन्दी भाषा में है। इस कृति में जो भी विधि-विधान संग्रहित हैं वे विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर, प्रवचनसारोद्धार, आवश्यक बृहद्वृत्ति एवं साधुविधिप्रकाश आदि जैन विधि-विधान से सम्बन्धित ग्रन्थों के आधार पर लिये गये हैं। यह ग्रन्थ मुख्यतः साधुचर्या की आवश्यक -विधियों एवं विशिष्ट सामाचारियों से संबद्ध है। इस ग्रन्थ में वे ही विधि-विधान संग्रहित हैं जो साधु जीवन की दैनिकचर्या में उपयोगी हो। इस ग्रन्थ की विषयवस्तु की अपेक्षा से इसका 'आवश्यकीय विधि संग्रह' यह नाम सार्थक प्रतीत होता है। इस ग्रन्थ की विषयवस्तु दो भागों में विभक्त की गई हैं। प्रथम भाग 'आवश्यकीय विधि संग्रह' से सम्बन्धित हैं तथा दूसरा भाग 'आवश्यकीय विचार संग्रह' से समन्वित है। इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में उल्लेखित विधियों का विषयानुक्रम अधोलिखित है- १. रात्रिकप्रतिक्रमण विधि, २. प्रातःकालीन प्रतिलेखन विधि, २.१ सामान्य प्रतिलेखन विधि, २.२ अंगप्रतिलेखन विधि, २.३ उपधि प्रतिलेखन विधि, २.४ स्थापनाचार्य प्रतिलेखन विधि ३. गुरुवंदन विधि ४. चैत्यवंदन विधि ५. दिन के प्रथम प्रहर की ( उग्घाडा पोरिसीह की ) विधि ६. पात्रप्रतिलेखन विधि ७. आहार ग्रहण के निमित्त भ्रमण करने की विधि ८. आहार ग्रहण के सम्बन्ध में आलोचना करने की विधि ६. प्रत्याख्यान पारने की विधि १०. स्थंडिल ( लघुनीत - बडीनीत ) के लिए गमन करने की विधि ११. सन्ध्याकालीन प्रतिलेखना खरतरगच्छीय मोहनमुनि के समुदायवर्ती श्री राजमुनिजी के दो शिष्य लब्धिमुनिजी और केशरमुनिजी थे । प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्त्ता बुद्धिसागर जी इन्हीं केशरमुनि जी के शिष्य थे। यह कृति वि.सं. १६६३ में 'श्री हिन्दी जोनागम प्रकाशक सुमति कार्यालय जैन प्रेस, कोटा' से प्रकाशित हुई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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