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जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास/99
उक्त विवेचन के आधार पर यह सिद्ध होता है कि प्रस्तुत आगम अपने नाम के अनुसार विषय का प्रतिपादन करने वाला, साधु जीवन की उत्कृष्टचर्या का निरूपण करने वाला तथा भगवान महावीर की वाणी को प्रत्यक्ष दर्शाने वाला है। आचारांगनियुक्ति
आचारांगसूत्र' मूल में कहीं संक्षिप्त तो कहीं विस्तृत रूप से 'विधि-विधान' की चर्चा उपलब्ध होती है। यह नियुक्ति आचारांगसूत्र के दोनों श्रुतस्कन्धों पर रची गई है। अतः नियुक्ति की संक्षिप्त चर्चा करना प्रसंगोचित्त है।
___ आचारांगनियुक्ति की रचना परवर्ती काल की है लेकिन विषय-निरूपण की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। उत्तराध्ययननियुक्ति में निक्षेपों के वर्णन में प्रायः एकरूपता है लेकिन आचारांगनियुक्ति इसकी अपवाद है। इसमें आचार, अंग, ब्रह्म, चरण, शस्त्र, संज्ञा, दिशा, पृथिवी, विमोक्ष, ईर्या आदि शब्दों की निक्षेपपरक व्याख्या में अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का प्रतिपादन हुआ है।' यह प्राकृत पद्य में निबद्ध है। इसमें ३४७ गाथाएँ हैं। नियुक्ति के आधार पर इसमें मूल शब्दों का निक्षेप पूर्वक आख्यान हुआ है। विशेष में भावाचार के विषय में सात द्वार कहे गये हैं, आचार के १० पर्याय बताये गये हैं, आचारांग प्रथम अंग क्यों? इसका कारण बताया गया है, साथ ही उपधानश्रुत की प्राचीनता सिद्ध की गई है। आचारांगचूर्णि
यह चूर्णि नियुक्ति की गाथाओं के आधार पर ही लिखी गई है। इस चूर्णि में प्रायः उन्हीं विषयों का विवेचन है जो आचारांगनियुक्ति में है। आचारांगसूत्र का मूल प्रयोजन श्रमणों के आचार-विचार की प्रतिष्ठा करना है अतः इस चूर्णि में प्रत्येक विषय का प्रतिपादन इसी प्रयोजन को दृष्टि में रखते हुए किया गया है। आचारांगविवरण
__ प्रस्तुत विवरण मूलसूत्र एवं नियुक्ति पर है। यह विवरण शीलांककृत है। इसकी रचना के सम्बन्ध में भिन्न-भिन्न उल्लेख प्राप्त होते हैं वस्तुतः इसका रचनाकाल ६ वी १० वीं शती के आस-पास है चूंकि शीलांक उस समय विद्यमान थे।
__इस विवरण में विषय या शब्द को शब्दार्थ तक ही सीमित नहीं रखा है अपितु प्रत्येक विषय का विस्तार पूर्वक विवेचन किया गया है। अपने वक्तव्य की
' नियुक्तिपंचक- वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी, पृ. ४१ २ जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भा. ३, पृ. २८७
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