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________________ 98/साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य विधान, ३. औद्देशिकादि दोषयुक्त वस्त्रैषणा के निषेध का विधान, ४. वस्त्र-ग्रहण से पूर्व प्रतिलेखना का विधान, ५. वस्त्र प्रक्षालन निषेध का विधान, ६. वस्त्र-सुखाने की विधि एवं निषेध, ७. कल्पनीय वस्त्र याचना विधि, ८. वस्त्र धारण की सहज विधि, ६. समस्त वस्त्रों सहित विहारादि की विधि एवं निषेध, १०. प्रातिहासिक वस्त्र ग्रहण और प्रत्यर्पण विधि, ११. वस्त्र रखने की विधि इत्यादि। पात्रैषणा नामक षष्ठम अध्ययन में पात्र सम्बन्ध विधि विधान निर्दिष्ट किये गये हैं वे इस प्रकार हैं - १. एषणा दोषयुक्त पात्र-ग्रहण का निषेध, २. बहुमूल्य पात्र-ग्रहण निषेध, ३. पात्रैषणा की चार प्रतिमाओं का विधान, ४. अनैषणीय पात्र ग्रहण का निषेध, ५. पात्र-प्रतिलेखन का विधान, ६. पात्र बीजादि युक्त होने पर उनके ग्रहण करने की विधि, ७. सचित्त संसृष्ट पात्र को सुखाने की विधि, ८. विहार के समय पात्र विषयक विधि, ६. पात्र की याचना करने की विधि और १०. पात्र रखने की विधि। इसके साथ ही पात्र के प्रकार एवं उसकी मर्यादा का भी निरूपण किया गया है। अवग्रहैषणा नामक सप्तम अध्ययन में अवग्रह विषयक विधि-विधान कहे गये हैं वे . निम्न हैं - १. अवग्रह याचना के विविध प्रकार, २. अवग्रह के लिए वर्जित स्थान का विधान, ३. आम्रवन आदि में अवग्रह के विधि एवं निषेध, ४. अवग्रह ग्रहण में सात प्रतिमाओं का विधान, ५. अवग्रह के पाँच प्रकार और ६. अवग्रह याचना करने की शास्त्रीय विधि आदि। द्वितीय श्रुतस्कन्ध की दूसरी चूला सप्तसप्ततिका के भी सात अध्ययन हैं उसके नाम ये हैं - १. स्थान, २. निषीधिका, ३. उच्चार प्रनवण, ४. शब्द, ५. रूप, ६. परक्रिया, और ७. अन्योन्यक्रिया। द्वितीय चूला के इन अध्ययनों में विधि-विधान की कोई विशेष चर्चा उपलब्ध नहीं होती है। तृतीय चूलिका में 'भावना' नामक एक ही अध्ययन है। चतुर्थ चूलिका में भी 'विमुक्ति' नामक एक ही अध्ययन है। इन चूलिकाओं में भी विधि-विधान का उल्लेख दृष्टिगत नहीं होता है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में जो आचारविधि कही गई है उसका आचारण किसने किया? इस प्रश्न का उत्तर तृतीय चूलिका में है। इसमें भगवान महावीर के चरित्र का वर्णन है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के नवम अध्ययन उपधानश्रूत्र में महावीर के जन्म, माता-पिता, स्वजन इत्यादि के विषय में कोई उल्लेख नहीं है। इन्हीं सब बातों का वर्णन तृतीय चूलिका में है। इसमें पाँच महाव्रतों एवं उनकी पाँच-पाँच भावनाओं का स्वरूप भी बताया गया है। इस कारण इस चूलिका का 'भावना' नाम सार्थक है। चतुर्थ चूलिका में विभिन्न उपनामों द्वारा वीतराग के स्वरूप का वर्णन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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