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________________ इनमें से प्रथम चार चूलिकाएँ आचारांग में ही हैं किन्तु पाँचवी चूलिका अति विस्तृत होने के कारण आचारांग से भिन्न कर दी गई है और वह 'निशीथसूत्र' के नाम से एक अलग ग्रन्थ के रूप में उपलब्ध है। जैन विधि-विधान सम्बन्धी साहित्य का बृहद् इतिहास / 97 इस द्वितीय श्रुतस्कन्ध' की प्रथम चूला में सात अध्ययन हैं इनके नाम ये हैं - १. पिण्डैषणा, २. शय्यैषणा, ३. ईर्येषणा, ४. भाषाजातैषणा, ५. वस्त्रैषणा, ६. पात्रैषणा और ७. अवग्रहैषणा । पिण्डैषणा नामक अध्ययन में निम्न विधानों की चर्चा हुई हैं १. कल्पनीय-अकल्पनीय आहार की विधि, २. औद्देशिकादि दोष-रहित आहार की एषणा विधि, ३. अष्टमी पर्रादि में आहार ग्रहण की विधि एवं निषेध, ४. भिक्षा योग्य कुलूकी गवेषणा विधि, ५. इन्द्रमह आदि उत्सव में अशनादि एषणा की विधि, ६. जीमनवार के आहार की त्याग विधि, ७ . अशुद्ध आहार के परित्याग की विधि, ८. गोदोहन वेला में भिक्षार्थ प्रवेश निषेध विधि, ६. अतिथि श्रमण आने पर भिक्षा विधि, १० अग्रपिंड ग्रहण निषेध ११. विषममार्गादि से भिक्षाचर्यार्थ गमन निषेध का विधान, १२. बंद द्वार वाले गृह में प्रवेश - निषेध का विधान, १३. पूर्व प्रविष्ट श्रमण माहणादि की उपस्थिति में भिक्षा विधि, १४. भिक्षाग्रहण की विधि, १५. पानी ग्रहण करने की विधि, १६. आधाकर्मिक आदि आहार ग्रहण का निषेध, १७ अग्राह्य लवण परिभोग परिषठापन विधि, १८. आहार भोगने की विधि, १६. आहार पान की सप्तैषणा विधि शय्यैषणा नामक द्वितीय अध्ययन में ये विधान मिलते हैं। १. उपाश्रयएषणा की विधि, २ . उपाश्रय एषणा के विधि - निषेध, ३. गृहस्थ संसक्त उपाश्रय - निषेध का विधान, ४. उपाश्रय - याचना की विधि, ५. उच्चार-प्रस्रवण- भूमि प्रतिलेखना की विधि इत्यादि । ईषणा नामक अध्ययन में निम्न विधि-विधान प्राप्त होते हैं १. वर्षावास में विहार चर्या की विधि, २. नौकारोहण विधि, ३. जंघाप्रमाण जल - संतरण की विधि, ४. विषम मार्गादि से गमन निषेध की विधि, ५. आचार्यादि के साथ विहार में विनय - विधि, ६ मार्गातिक्रमण की विधि आदि । भाषाजातैषणा इस अध्ययन में सोलह वचन बोलने की विधि एवं सावद्य भाषा त्याग की विधि कही गई है। वस्त्रैषणा नामक पंचम अध्ययन में निम्न विधि-विधान कहे गये हैं वे ये हैं १. अनैषणीय वस्त्र की ग्रहण निषेध विधि, २. वस्त्रैषणा की चार प्रतिमाओं का १ (क) आचारांगसूत्र - मुधकरमुनि (ख) आचारांगसूत्र - अमोलकऋषि Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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