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________________ 94/साध्वाचार सम्बन्धी साहित्य श्लोकों की व्याख्यामात्र नहीं करती, अपितु उनमें आगम विषयों को विशेष रूप से स्पष्ट करने के लिए और उससे सम्बद्ध अन्य आवश्यक जानकारी देने के लिए ग्रन्थान्तरों से उद्धरण देते हुए उस पर समुचित प्रकाश भी डालती है। इस वजह से इन टीकाओं का महत्त्व मूलग्रन्थ से भी अधिक है। आशाधरजी के द्वारा रचे गये अन्य ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं उनमें अध्यात्मरहस्य, क्रियाकलाप, जिनयज्ञकल्प और उसकी टीका, त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र, नित्यमहोद्योत, प्रमेयरत्नाकर, भरतेश्वराभ्युदय, रत्नत्रयविधान, राजीमतीविप्रलम्भ, सहस्रनामस्तवन और उनकी टीका प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने अमरकोश, अष्टांगहृदय, आराधनासार, इष्टोपदेश, काव्यालंकार, भूपालचतुर्विंशतिका एवं मूलाराधना इन अन्यकर्तृक ग्रन्थों पर टीकाएँ भी लिखी है। आचारांगसूत्र अंग आगमों में आचारांग का स्थान प्रथम है। इसके नाम से ही 'स्पष्ट हो जाता है कि यह आचार' सम्बन्धी ग्रन्थ है। इसमें श्रमण जीवन की साधनाविधि का जो मार्मिक विवेचन उपलब्ध होता है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। संघ-व्यवस्था की दृष्टि से आचार की व्यवस्था आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य मानी गई है। यह आगम अर्धमागधी प्राकृत भाषा में है। इसमें गद्य और पद्य दोनों ही शैली का सम्मिश्रण है। गद्य का प्रयोग बहुलता से हुआ है। इस सूत्र के रचयिता पंचम गणधर सुधर्मा स्वामी है किन्तु इसके मूलभूत भावों (अर्थ) के प्ररूपक तीर्थंकर महावीर है। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि तीर्थकर प्रभु अर्थ रूप में जब देशना देते हैं तब प्रत्येक गणधर अपनी भाषा में सूत्रों का निर्माण करते हैं। इसका रचनाकाल ई. पूर्व पांचवी शती है किन्तु चार चूलिकारूप द्वितीय श्रुतस्कन्ध परवर्ती है। आचारांग के दो श्रुतस्कंध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम ब्रह्मचर्य है और ' (क) आचारांग नियुक्ति गा. ११ (ख) हरिभद्रीय नन्दी, वृत्ति पृ. ७६ (ग) नन्दीचूर्णि, पृ. ३२ (घ) समवायांगवृत्ति, पृ. १०८ (ड) पद अर्थ का वाचक और द्योतक है। बैठना, बोलना, अश्व, वृक्ष आदि पद वाचक कहलाते हैं। प्र. परि. च, वा आदि अन्यय पदों को द्योतक कहा जाता है। पद के नामिक, नौपातिक, औपसर्गिक, आख्यातिक और मिश्र आदि प्रकार है। वि.भा.गा. १००३ उद्धृत आचारांगसूत्र प्रथम, पृ. २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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