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पुण्य धरा पर पधारी । आप श्री की निश्रा में मन्दिर-दादाबाडी व उपाश्रय के निर्माण की रूपरेखा का आरम्भ हुआ एवं उसे साकार रूप देते हुए महावीर नगर केम्प में जमीन ली गई। साथ ही महावीरस्वामी देरासर पायधुनी, मुंबई से दादा जिनकुशलसूरी की प्रतिमा मंगवाकर एक भव्य कक्ष में स्थापित कर दी गई। उस समय से सेवा-पूजा, आरती-भक्ति आदि का क्रम प्रारंभ हो गया।
इसके कुछ समय पश्चात् जिनमंदिर-दादाबाड़ी हेतु भूमिपूजन और शिलान्यास का कार्यक्रम भी सम्पन्न हुआ। व्यवसायरत युवा वर्ग, छोटा सा संघ और इतना बड़ा कार्य लोगों के मन में शंकाएं पैदा करने लगा। इधर गुरुदेव की साधना-शक्ति से युवावर्ग का उल्लास भाव दिन दुगुना-रात चौगुना बढ़ता चला और स्वयं के द्वारा न्यायोपार्जित द्रव्य से इस कार्य को निर्विघ्नतया सुसम्पन्न किया। इस रूपरेखा को तैयार करने एवं आगे बढ़ाने में बाबूलालजी संखलेचा, शांतिलालजी छाजेड़, छगनराजजी मेहता, सम्पतराजी बोथरा, मूलचन्दजी बोहरा, रामलालजी बोहरा, कैलाशजी मेहता आदि प्रमुख थे।
इस अवधि के दरम्यान इस धरा पर खरतरगच्छीय साधु-साध्वियों का आगमन निरन्तर बना रहा। संघ भी धार्मिक आराधनाओं में संलग्न रहा। प्रतिवर्ष पयूषण की आराधना करवाने के लिए महाकौशल संघ(छत्तीसगढ़) द्वारा सुयोग्य स्वाध्यायियों का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ, जिनमें प्रमुखतः कुमारपाल भाई शाह, किशनलालजी कोटड़िया, ज्योतिकुमार जी कोठारी, धनराजजी चौपड़ा आदि। कार्य पूर्णाहूति के पश्चात् स्वप्न को साकार रूप देने की घड़िया निकट आ पहुँची। परिणामतः आचार्य श्री महोदयसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा, उपाध्याय श्री मणिप्रभसागर जी म.सा. द्वारा प्रदत्त शुभमुहूर्त माघकृष्णाषष्ठी, 26 जनवरी 2000 के दिन अंजनशलाका-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम अत्यन्त भावोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर पूज्या मणिप्रभाश्रीजी म.सा. की पुण्य निश्रा भी संप्राप्त हुई। इस प्रसंग में दुर्ग निवासिनी रेखा दूगड़ की भागवती दीक्षा का आयोजन सोने में सुहागा रूप बना। इसी दिन मालेगांव दादाबाड़ी के इतिहास को स्वर्णिम पृष्ठों पर
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