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________________ अंकित कर देने वाली चमत्कारिक घटना यह हुई कि रेखा दूगड़ की दीक्षा एवं देवाधिदेव की प्रतिष्ठा सम्पन्न हो जाने के बाद विधिकारक के रूप में आमन्त्रित जयपुर निवासी महेश भाई और राजनांदगांव निवासी किशनलाल जी कोटडिया ने पारिवारिकजन एवं धर्मपत्नी की अनुमति प्राप्तकर चिर अभिलषित भावनाओं को साकार रूप देते हुए बिना किसी आडंबर के मुनिवेश धारण किए। जब वे हजारों की संख्या में उपस्थित जन समूह के बीच नये वेश में पधारे तो जनमेदिनी के आश्चर्य का पारावार न रह गया। यौवन की दहलीज पर पहुँचकर भरे-पूरे परिवार पत्नी व बच्चों के प्रति सहज, किन्तु प्रगाढ़ रूप से रहे मोहभाव का सहसा परित्याग कर देना शूरवीरों का ही कार्य है । उस दृश्य को देखकर जन- मेदिनी भावविह्वल हो गई। सभी की आँखों से हर्ष, उत्साह एवं अतिरेक से अश्रु की अविरल धारा बहने लगी। इस अद्भुत घटना ने मालेगांव नगर को और अधिक विख्यात कर दिया । सुयोग्य महेशभाई एवं किशनलालजी का क्रमशः मणिरत्नसागरजी एवं कल्परत्नसागरजी नाम रखा गया और पूज्य महोदयसागरसूरी जी के शिष्य घोषित किए गए। में अब दादाबाडी एवं घरों के बीच दो-ढाई कि.मी. की दूरी होने के कारण चातुर्मास करवाने की समस्या उत्पन्न हुई परन्तु श्री संघ का प्रबल पुण्योदय समझें सन् 2001 में पूज्या सज्जनमणि शशिप्रभाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा 5 का इस संघ को सुखद सान्निध्य मिला । 'श्री जिनकुशलसूरि दादाबाड़ी बाडमेर ट्रस्ट' के तत्त्वावधान पूज्या श्री का ऐतिहासिक चातुर्मास सम्पन्न हुआ । यह मालेगांव बाडमेर संघ के लिए प्रथम चातुर्मास था, अतः युवापीढ़ी में उमंग व उल्लास का होना स्वाभाविक था । इस चातुर्मास के अन्तराल में प्रतियोगिताएँ, तपस्याएँ, शिविर, जपानुष्ठान आदि विभिन्न स्तर की आराधनाओं का सिलसिला इस तरह से चल पड़ा कि चातुर्मास काल की पूर्णता का भी अहसास न हो पाया। साथ ही तप अनुमोदन -समारोह, सरस्वती - अनुष्ठान, युवा-युवति - महिला शिविर, आओ प्रभु से बात करें, धार्मिक हाऊजी, आदि धर्ममय अनुष्ठान इतिहास के अविस्मरणीय अंग बन गए। इसी कड़ी में दादा आदिनाथ के पगल्यों की टांकणी का कार्यक्रम भी रखा गया। साध्वी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001679
Book TitleJain Vidhi Vidhan Sambandhi Sahitya ka Bruhad Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages704
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, History, Literature, & Vidhi
File Size11 MB
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