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________________ 52 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजना श्री अन्तिम आराधना सम्बन्धी जैन - साहित्य में संवेगरंगशाला का स्थान : अन्तिम आराधना सम्बन्धी जैन - साहित्य में संवेगरंगशाला का क्या महत्व है, यह निर्धारित करने के लिए हमें उसके पूर्ववर्ती और परवर्ती - साहित्य का विचार करना होगा। जैसा कि हमने पूर्व में उल्लेखित किया है कि प्राचीन जैन-आगमों में आचारांगसूत्र के आठवें अध्याय में समाधिमरण की साधना का संक्षिप्त उल्लेख उपलब्ध होता है, फिर भी आचारांग को समाधिमरण से सम्बन्धित स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं माना जा सकता है, इसी प्रकार अन्तकृत्दशा, अनुत्तरोपपातिकदशा तथा विपाकदशा में भी कुछ मुनियों एवं साध्वियों द्वारा समाधिमरण ग्रहण करने का उल्लेख है। इसी प्रकार उपासकदशा में श्रावकों द्वारा समाधिमरण ग्रहण करने के उल्लेख हैं, किन्तु इन सभी ग्रन्थों में समाधिमरण सम्बन्धी उल्लेख अति संक्षिप्त हैं; कहीं-कहीं तो ये ग्रन्थ मात्र समाधिमरण का निर्देश ही करते हैं, उसकी प्रक्रिया आदि की विस्तृत चर्चा नहीं करते हैं। यद्यपि अन्तकृत्दशाओं में ऐसा उल्लेख मिलता है कि जब साधक का शरीर अत्यन्त कृश हो जाए, तब वह समाधिमरण को ग्रहण कर सकता है | आगमों में उत्तराध्ययनसूत्र अवश्य एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसमें समाधिमरण से सम्बन्धित एक पूरा अध्याय है; फिर भी ये सभी ग्रन्थ समाधिमरण से सम्बन्धित स्वतन्त्र ग्रन्थ की कोटि में नहीं आते हैं। प्रकीर्णक साहित्य में भी यद्यपि समाधिमरण से सम्बन्धित लगभग २२ ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इनमें भी आराधनाकुलक आदि कुछ ग्रन्थ तो अत्यन्त संक्षिप्त हैं। आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, आदि कुछ ग्रन्थ समाधिमरण से सम्बन्धित तो अवश्य हैं, किन्तु ये ग्रन्थ मुख्यतया उपदेश या अनुशास्तिपरक हैं। प्रकीर्णक - साहित्य में उपलब्ध ग्रन्थों में मरणसमाधि ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो समाधिमरण का अतिविस्तार से विवेचन करता है । इन प्रकीर्णक ग्रन्थों में एक संस्तारक - प्रकीर्णक है, जो समाधिमरण का सम्पूर्ण रूप से विवेचन तो करता है, फिर भी मात्र १२२ गाथाओं में निबद्ध होने के कारण संक्षिप्त ही कहा जाएगा । इसी प्रकार वीरभद्रकृत भक्तपरिज्ञा भी समाधिमरण से सम्बन्धित एक पूर्ण ग्रन्थ कहा जा सकता है, किन्तु आकार की अपेक्षा यह भी मात्र १७३ गाथाओं में निबद्ध है। समाधिमरण से सम्बन्धित प्राचीन ग्रन्थों में मरणसमाधि या मरणविभक्ति नामक ग्रन्थ एक विस्तृत ग्रन्थ माना जा सकता है। यह ग्रन्थ आठ ग्रन्थों से मिलकर बना है और समाधिमरण के सभी पक्षों का विवेचन प्रस्तुत करता है। यह ग्रन्थ ६६१ गाथाओं में सम्पूर्ण हुआ। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करें, तो संवेगरंगशाला का आकार इससे चौदह गुना अधिक है । किचिंत परवर्ती में प्राचीन आचार्यकृत आराधनापताका भी अन्तिम आराधना से सम्बन्धित महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में ६३२ गाथाएं हैं, अतः यह ग्रन्थ भी संवेगरंगशाला की अपेक्षा तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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