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________________ 42 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजना श्री में वर्णित यवराजर्षि, लोभानन्दी, अर्णिकापुत्र, सुकौशलमुनि, अवन्तिसुकुमाल, चाणक्य, चिलातिपुत्र एवं गजसुकुमाल आदि के कथानकों की संवेगरंगशाला में वर्णित कथानकों से समानता है । ३. वृहत्कायग्रन्थों में प्रकीर्णकों के नाम सम्मिलित हैं, जिनमें २०० से लेकर १००० तक या उससे भी अधिक गाथाएं उपलब्ध हैं। वे प्रकीर्णक निम्न हैं: १. आराधनासार अथवा पर्यन्ताराधना २. आराधनापंचक ३. मरणविभक्ति या मरणसमाधि ४. प्राचीन आचार्यविरचित आराधनापताका एवं ५. श्री वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका | इन प्रकीर्णकों में द्वारों की संख्या भी अधिक है एवं उनका विवेचन भी विस्तृत है। कहीं-कहीं उपद्वारों का भी उल्लेख है, फिर भी संवेगरंगशाला की अपेक्षा इन प्रकीर्णकों का आकार छोटा ही है। इनमें अन्य लघु प्रकीर्णकों में प्रतिपादित विषयवस्तु का विस्तार से वर्णन है तथा समाधिमरण सम्बन्धी आराधना का भी सांगोपांग विवरण उपलब्ध है। इनमें वर्णित संलेखनाद्वार, पापस्थानकद्वार, सागारद्वार, अनशनद्वार, अनुशास्तिद्वार, भावनाद्वार, कवचद्वार, शुभध्यानद्वार, आलोचनाद्वार, क्षमापनाद्वार, क्षमाद्वार, लेश्याद्वार, परीक्षाद्वार, निर्यामकद्वार, योग्यताद्वार, वसतिद्वार, क्षामणाद्वार और आराधनाफलद्वार का विवरण संवेगरंगशाला के विवरण से बहुत कुछ समानता रखता है। संवेगरंगशाला और आराधनापताका की विषयवस्तु का तुलनात्मक विवेचन : संवेगरंगशाला नामक ग्रन्थ में सर्वप्रथम आराधना के दो भेद किए गए हैं। प्रथम - सामान्य आराधना एवं द्वितीय- विशेष आराधना। आगे सामान्य आराधना के चार भेद करने के पश्चात् विशेष आराधना के भी दो भेद किए गए हैं संक्षिप्त विशेष आराधना और विस्तृत विशेष आराधना । विस्तृत आराधना के चार मूल द्वार हैं। १. परिकर्मविधिद्वार २. परगणसंक्रमणद्वार ३. ममत्व का उच्छेदद्वार और ४. समाधिद्वार । इन चार द्वारों में अनुक्रम से पन्द्रह, दस, नौ और नौ प्रतिद्वार हैं। " 31 परिकर्मविधिद्वार के पन्द्रह उपद्वार और उनके प्रतिद्वार क्रमशः इस प्रकार हैं:- १. अर्हद्वार २. लिंगद्वार ३. शिक्षाद्वार ४. विनयद्वार ५. समाधिद्वार ६. मनोनुशास्तिद्वार ७. अनियतद्वार ८. राजद्वार ६. परिणामद्वार १०. त्यागद्वार 31 संवेगरंगशाला, गाथा १-१००५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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