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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 41 विषयक प्रत्येक पक्ष पर विस्तार से विवरण उपलब्ध है, जबकि इन प्रकीर्णकों में समाधिमरण सम्बन्धी विवेचन ही मुख्यतः परिलक्षित होता है। संवेगरंगशाला एवं अन्य प्रकीर्णकों की विषय-वस्तु के तुलनात्मक अध्ययन हेतु प्रकीर्णकों को आकार, अर्थात् गाथा संख्या की अपेक्षा से तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। अतिलघु आकार के ग्रन्थ, मध्यम आकार के ग्रन्थ और वृहत्काय ग्रन्थ । १. लघु आकार के ग्रन्थों में वे प्रकीर्णक आते हैं, जिनमें ५० से कम गाथाएं उपलब्ध हैं तथा जिनमें द्वारों के मात्र नाम एवं समाधिमरण सम्बन्धी संक्षिप्त उल्लेख हैं। वे निम्न हैं : 9. आराधना-कुलक २. आलोचना- कुलक ३. मिथ्यादुष्कृत- कुलक ४. आत्मबोधि-कुलक ५. आत्मविशोधि - कुलक ६. चतुःशरण- प्रकीर्णक ७. प्राचीन आतुर - प्रत्याख्यान और ८. वीरभद्रकृत आतुरप्रत्याख्यान । ये प्रकीर्णक अत्यन्त लघु आकार वाले हैं। इन प्रकीर्णकों में वर्णित समाधिमरण से सम्बन्धित विषयवस्तु मूलतः सभी प्रकीर्णकों में समान रूप से उपलब्ध है, जो इस प्रकार है : १. क्षमापनाद्वार २. आलोचनाद्वार ३ अनुशास्तिद्वार ४. पापस्थानकों का त्यागद्वार ५. शुभभावनाद्वार और ६ अनशनद्वार । संवेगरंगशाला में और इन प्रकीर्णकों में वर्णित विषयवस्तु या द्वारों के नामों में प्रायः समानता है। २. मध्यम आकार के ग्रन्थों में उन प्रकीर्णकों का उल्लेख किया गया है, जिनमें ५० से अधिक, किन्तु २०० से कम गाथाएं उपलब्ध हैं। इनमें द्वारों का प्रदिपादन नहीं होने पर भी समाधिमरण विषयक विषयवस्तु का प्रतिपादन समीचीन रूप से मिलता है। इनमें संक्षेप में या विस्तार से कुछ कथानक वर्णित हैं। ये ग्रन्थ निम्न हैं : १. नन्दनमुनि आराधित आराधना २. कुशलानुबन्धी अध्ययन ( चतुःशरण) ३. आतुरप्रत्याख्यान ४. जिनशेखर श्रावक प्रति सुलस श्रावक आराधित आराधना ५. अभयदेवसूरि प्रणीत आराधना - प्रकरण ६ संस्तारक - प्रकीर्णक ७. महाप्रत्याख्यान और ८. भक्तपरिज्ञा । इन प्रकीर्णकों में प्रायः द्वारों के नामों का उल्लेख नहीं है, फिर भी संवेगरंगशाला में वर्णित विषयवस्तु एवं कथानकों की प्रकीर्णकों में वर्णित विषयवस्तु एवं कथानकों से समरूपता परिलक्षित होती है। संस्तारक एवं भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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