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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 39
चौथे सम्यकद्वार में शंका, कांक्षादि दोषों से रहित सम्यक्त्व प्राप्त करने की कामना की गई है। पांचवें अणुव्रतद्वार एवं छठवें गुणवतद्वार में पाँच अणुव्रत एवं तीन गुणव्रतों का पालन करने का निर्देश है। सातवें पापस्थानद्वार में १८ पापस्थानों के नामों का निर्देश है। आठवें सागारद्वार में इष्ट आदि के त्याग का एवं नौवें द्वार में चतुःशरण ग्रहण करने का निर्देश है।26
दसवें, ग्यारहवें, बारहवें, तेरहवें, और चौदहवें द्वारों में क्रमशः दुष्कृत गर्हा, सुकृत-अनुमोदना, शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श के विषयों के त्याग, संघादि से क्षमापना और चतुर्गति के जीवों से क्षमापना का निरूपण है। पन्द्रहवें द्वार में चैत्यवन्दनपूर्वक कार्यात्सर्ग करने का और फिर सोलहवें द्वार में गुरुवन्दनपूर्वक अनशन की प्रतिपत्ति का, सत्रहवें द्वार में वेदना पीड़ित क्षपक के प्रति उपदेश का निर्देश है। अठारहवें भावनाद्वार तथा उन्नीसवें कवचद्वार में वेदनावश चंचलचित्त वाले आराधक के लिए गुरु द्वारा स्थिरीकरण का उपदेश है। बीसवें द्वार में पंचपरमेष्ठियों को नमस्कार का, इक्कीसवें द्वार में ध्यान का, बाईसवें द्वार में निदान नहीं करने का, तेईसवें द्वार में अतिचारों का और अन्तिम चौबीसवें द्वार में आराधना के फल का उल्लेख है।27 (१८) आराधना-पंचक :- यह समाधिमरण का स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है, अपितु उद्योतनसूरिकृत कुवलयमाला का ही समाधिमरण से सम्बन्धित अंश है। इसमें भी समाधिमरण का विस्तृत विवेचन उपलब्ध है। (१६) मरणविभक्ति या मरणसमाधि :
___ परम्परागत दस प्रकीर्णकों में यह सबसे बड़ा है। इसमें ६६१ गाथाएं हैं। ग्रन्थकार के अनुसार १. मरणविभक्ति २. मरणविशोधि ३. मरणसमाधि ४. संलेखनाश्रुत ५. भक्तपरिज्ञा ६. आतुरप्रत्याख्यान ७. महाप्रत्याख्यान और ८. आराधना- इन आठ प्राचीन श्रुत ग्रन्थों की गाथाएँ प्रस्तुत प्रकीर्णक में उपलब्ध हैं। अन्य लघु प्रकीर्णको में निर्देशित तथ्यों का इसमें विस्तार से वर्णन किया गया है।28
इसमें समाधिमरण के आधारभूत चौदह द्वार बताए गए हैं- १. आलोचनाद्वार २. संलेखनाद्वार ३. क्षमापनाद्वार ५. उत्सर्गद्वार ६. उद्ग्रासद्वार ७. संथाराद्वार . निसर्गद्वार ६. वैराग्यद्वार १०. मोक्षद्वार ११. ध्यानविशेषद्वार १२. लेश्याद्वार १३. सम्यक्त्वद्वार और १४. पादपोपगमनद्वार।
आराधना सार/पर्यन्ताराधना-पइण्णयसुत्ताई, भाग २, पृ. १६६-१६२, गाथा १-२६ आराधना सार/पर्यन्ताराधना-पइण्णयसुत्ताई, भाग २, गाथा ३०-२६३ मरणविभक्ति पइण्णयसुत्तई, भाग १, पृ. ६६-१५६, गाथा १-६६१
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