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36/ साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री
जन्म के पूर्व उनकी माता द्वारा देखे गए चौदह स्वप्नों के नाम और चतुःशरण-ग्रहण, दुष्कृत की निन्दा और सुकृत के अनुमोदन का फल वर्णित है।18 (१२) जिनशेखर श्रावक प्रति सुलस श्रावक प्रेरित आराधना :
इस प्रकीर्णक में भी ७४ गाथाएँ हैं। इसमें अनशन की प्रेरणा आदि आठ द्वारों का उल्लेख है। अन्त में वेदना सहन करने और अनशन में समभाव रखने का उपदेश दिया गया है। (१३) अभयदेवसूरिप्रणीत ‘आराधना प्रकरण' :
इस प्रकीर्णक में ७५ गाथाएँ हैं। अन्तिम गाथा में 'अभयदेवसरिरइयं इस उल्लेख से इसके कर्ता अभयदेवसरि निश्चित होते हैं। इसमें १. आलोचनाद्वार २. व्रतोच्चारद्वार ३. क्षामणाद्वार ४. अनशनद्वार ५. शुभभावनाद्वार और ६. नमस्कारद्वार - इस प्रकार छः द्वारों का विवेचन करके अन्त में नमस्कारद्वार में पंचपरमेष्ठि की वन्दना करते हुए नमोक्कार मन्त्र का माहात्म्य प्रतिपादित किया गया है।20 (१४) संस्तारकप्रकीर्णक :
संस्तारक शब्द का तात्पर्य है- अन्तिम आराधना के प्रसंग में ग्रहण किया जाने वाला दर्भादि की शय्या। इस प्रकीर्णक में १२२ गाथाएँ हैं। प्रकीर्णक के प्रारम्भ में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर को नमस्कार करके संस्तारक प्रकीर्णक में निबद्ध विषयों को सुनने का निर्देश है।
इस प्रकीर्णक में समाधिमरण से सम्बन्धित विवेचन ही प्रस्तुत किया गया है। गाथा क्रमांक छप्पन से दृष्टान्त के रूप में समाधिमरण ग्रहण करने वाली पुण्यात्माओं के नाम प्रस्तुत हैं, यथा -अर्णिकापुत्र, खन्दकमुनि के ५०० शिष्य, सुकौशलमुनि, अवन्तीसुकुमाल, चाणक्य, अभयघोष, गजसुकुमाल, आदि। ज्ञातव्य है कि ये सभी कथाएँ संवेगरंगशाला में भी वर्णित हैं। अन्त में क्षमापना का और भावनाओं का निरूपण है।21
कुशलानुबन्धि अध्ययन, भाग १, पृ. २६८-३०४, गाथा १-५४. जिनेश्वर श्रावक प्रति सुलस श्रावक प्रेरित आराधना, भाग २, पृ. २३२-२३६, गाथा १-६३ " श्री अभयदेवरिप्रणीत आराधना प्रकरण, भाग २, पृ. २२४-२३१, गा
संस्तारक प्रकीर्णक पइण्णयसत्ताई, भाग १, पृ. २८०-२६१, गाथा १-१२२
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