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________________ 32 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजना श्री वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका १२. पर्यन्ताराधना १३. आराधनापंचकम् १४. आतुरप्रत्याख्यान १५ आराधनाप्रकरणम् १६. जिनशेखर श्रावक प्रति सुलस श्रावक आराधित आराधना १७. नन्दनमुनि आराधित आराधना १८. आराधनाकुलकम् १६. मिथ्यादुः कृतकुलकम् २०. मिथ्यादुः कृतकुलकम् आलोचनाकुलकम् और २२. आत्मविशोधिकुलकम् । २१. यहाँ यह ज्ञातव्य है कि इस प्रकीर्णक साहित्य में आतुर प्रत्याख्यान नामक तीन ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। इसी प्रकार आराधनापताका नाम से भी दो ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इन अन्तिम आराधना या समाधिमरण से सम्बन्धित ग्रन्थों में अधिकांश का सम्बन्ध मुनि जीवन में की गई अन्तिम आराधना से है, किन्तु इन ग्रन्थों में सुलस श्रावक द्वारा जिनशेखर श्रावक को कराई गई आराधना का भी उल्लेख है। इसी प्रकार उपासकदशांगसूत्र में भी श्रावकों द्वारा की गई अन्तिम आराधना का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार अन्तिम आराधना या समाधिमरण की साधना से सम्बन्धित जो ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, उनमें प्रकीर्णक-साहित्य के ग्रन्थों का महत्वपूर्ण स्थान है। अचेल - परम्परा या दिगम्बर - परम्परा में भी भगवती आराधना या मूलआराधना नामक एक ग्रन्थ उपलब्ध होता है, जिसका विषय भी गृहस्थ और मुनि - जीवन की अन्तिम आराधना है। इन आगमिक-ग्रन्थों के अतिरिक्त आगमिक - व्याख्या - साहित्य में निशीथचूर्णि में भी अन्तिम आराधना से सम्बन्धित विपुल सामग्री प्राप्त होती है। दिगम्बर परम्परा में श्रावक आचार से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे गए हैं। इन सभी ग्रन्थों में भी समाधिमरण की साधना का उल्लेख है। विस्तारभय से यहाँ उन सभी ग्रन्थों में समाधिमरण से सम्बन्धित जिन सूचनाओं का उल्लेख है, उनका निर्देश कर पाना सम्भव नहीं है, किन्तु इसी प्रकार न केवल जैन - साधना से सम्बन्धित ग्रन्थों में, अपितु जैन-कथा-साहित्य के ग्रन्थों में जहाँ सामान्य श्रावक - आचार और मुनि - आचार सम्बन्धी उल्लेख मिलते हैं, वहाँ इन ग्रन्थों में भी समाधिमरण से सम्बन्धित उल्लेख उपलब्ध होते हैं। समाधिमरण या अन्तिम आराधना से सम्बन्धित ग्रन्थों के प्रणयन में भी जैन आचार्यों ने इन कथा - ग्रन्थों की सामग्री के सम्बन्धित अंशों का ग्रहण किया है। विशेष रूप से यदि हम अपनी गवेषणा के मुख्य ग्रन्थ संवेगरंगशाला को देखें, तो हमें ऐसा लगता है कि उसकी कुल गाथाओं में लगभग दो तिहाई गाथाएँ तो कथाओं से ही सम्बन्धित है, क्योंकि जैन- परम्परा में कथा का भी प्रमुख उद्देश्य, व्यक्ति के वैराग्यभाव को जगाकर, उसे जीवन के अन्तिम चरण में समाधिमरण की साधना के लिए तत्पर बनाना है। यहाँ हम इस सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन न करते हुए केवल इतना ही निर्देशित करना चाहेंगें कि हमारा विवेच्य ग्रन्थ संवेगरंगशाला समाधिमरण सम्बन्धी प्रकीर्णक - साहित्य से किस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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