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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 31 का व्यवस्थित सन्देश प्रस्तुत किया गया है। अन्त में प्रशस्ति निरूपण में ग्रन्थकार की प्रशस्ति एवं मूल प्रति के लेखक का परिचय, इत्यादि विषयों का सर्वांगीण विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। आराधना सम्बन्धी जैन - साहित्य और उसमें संवेगरंगशाला का स्थान : आराधना से सम्बन्धित जैन साहित्य विशाल है । आगमकाल से लेकर वर्तमान युग तक आराधना सम्बन्धी साहित्य का सृजन होता रहा है। जैन-धर्म में आराधना के दो रूप उपलब्ध होते हैं। एक गृहस्थ और श्रमण - जीवन की सामान्य साधना व दूसरा जीवन के अन्तिम चरण में की जाने वाली अन्तिम आराधना या समाधिमरण की साधना । जहाँ तक सामान्य आराधना का प्रश्न है, हमको आगमों, आगमिक-व्याख्याओं और प्रकरण-ग्रन्थों में उसका विस्तार से उल्लेख मिलता है, यद्यपि यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जहाँ तक गृहस्थ और मुनि - जीवन की साधना से सम्बन्धित ग्रन्थों का प्रश्न है, उनमें आगमों की अपेक्षा चरणानुयोग सम्बन्धी सभी ग्रन्थ समाहित होते हैं। यहाँ विशेष रूप से हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि आगमों में उपासकदशांग को छोड़कर सामान्यतया जो भी चरणानुयोग सम्बन्धी ग्रन्थ हैं, वे मुख्य रूप से मुनि - आचार का विवेचन करते हैं । आगम - साहित्य में उपासक दशांग ही ऐसा ग्रन्थ है, जो श्रावक - जीवन की सामान्य साधना और अन्तिम आराधना का विवेचन प्रस्तुत करता है। आगमिक-ग्रन्थों में आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, दशाश्रुतस्कन्ध, वृहत्कल्प, जीतकल्प, व्यवहार, निशीथ, आदि ग्रन्थों का सम्बन्ध मुनि - आचार से है। इन आगम ग्रन्थों की निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि, आदि में भी मुनि - आचार का विस्तृत विवेचन उपलब्ध है। सामान्यतया, इन ग्रन्थों में प्रसंगानुसार समाधिमरण की साधना का भी उल्लेख हुआ है। विशेष रूप से आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के आठवें अध्ययन में और उत्तराध्ययनसूत्र के पाँचवें अध्ययन में समाधिमरण की विस्तृत चर्चा है। इनकी अपेक्षा भी प्रकीर्णक ग्रन्थों में समाधिमरण या अन्तिम आराधना के सम्बन्ध में हमें विस्तृत विवेचन मिलता है। मुनि पुण्यविजयजी द्वारा सम्पादित और महावीर जैन विद्यालय मुम्बई के द्वारा प्रकाशित परणयसुत्ताई के तीन भागों में संगृहीत ३३ प्रकीर्णकों से निम्न २२ प्रकीर्णक समाधिमरण या अन्तिम आराधना से सम्बन्धित हैं, वे निम्न हैं : १. चन्द्रावेध्यक २. मरणसमाधि ३. आतुरप्रत्याख्यान ४. महाप्रत्याख्यान ५. संस्तारक ६. चतुःशरण ७. आतुरप्रत्याख्यान ८. भक्तपरिज्ञा ६. वीरभद्राचार्यकृत आतुरप्रत्याख्यान १०. प्राचीनाचार्यविरचित् आराधनापताका ११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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