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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 33 प्रभावित है और जैन धर्म के अन्तिम आराधना, अर्थात् समाधिमरण की साधना सम्बन्धी साहित्य में उसका क्या स्थान है ? इस क्रम में सर्वप्रथम हम अन्तिम आराधना से सम्बन्धित कुछ प्रकीर्णकों की विषयवस्तु का उल्लेख करेंगे और फिर संवेगरंगशाला और वीरभद्र आचार्यकृत आराधनापताका की विषयवस्तु का तुलनात्मक विवेचन प्रस्तुत करेगे । यहाँ यह ज्ञातव्य है कि आराधना सम्बन्धी साहित्य में संवेगरंगशाला यदि किसी ग्रन्थ से बहुत प्रभावित है, तो वह वीरभद्रकृत आराधनापताका ही है। दूसरे शब्दों में कहें, तो संवेगरंगशाला वीरभद्रकृत आराधना का एक विस्तृत रूप है। जिन विषयों का विवेचन वीरभद्रकृत आराधनापताका में मात्र १००० गाथाओं में हुआ है, उसी को आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने १०,००० गाथाओं में विस्तृत और व्यापक रूप से प्रस्तुत किया है। जिनचन्द्रसूरिकृत संवेगरंगशाला अन्तिम आराधना या समाधिमरण सम्बन्धी प्रकीर्णक ग्रन्थों से भी प्रभावित है, अतः सर्वप्रथम संक्षिप्त रूप में यहाँ उनका विवेचन आवश्यक प्रतीत होता है। अन्य प्रकीर्णक ग्रन्थों में समाधिमरण की अवधारणा : पइण्णयसुत्ताइं के तीन भागों में तेंतीस प्रकीर्णक संगृहीत हैं, किन्तु यहाँ हम समाधिमरण विषयक प्रकीर्णकों की विषयवस्तु की ही चर्चा करेंगे। उल्लेखनीय है कि इन प्रकीर्णक ग्रन्थों में नन्दनमुनि आराधित आराधना - प्रकीर्णक के अतिरिक्त अन्तिम आराधना या समाधिमरण से सम्बन्धित शेष समस्त प्रकीर्णक प्राकृत भाषा में रचे गए हैं । आकार की दृष्टि से इन ग्रन्थों में जहाँ आराधना - कुलक में मात्र गाथाए हैं, वहीं वीरभद्रकृत आराधनापताका लगभग १००० गाथाओं में निबद्ध है। (१) आराधना - कुलक : यह प्रकीर्णकों में सबसे लघु प्रकीर्णक है। इसमें कुल ८ गाथाएँ हैं। इसमें केवल द्वारों के नाम मात्र निर्देश किए गए हैं, वे निम्न हैं : १. आराधक द्वारा आराधना व्रत ग्रहण की इच्छा २. क्षमापना ३. पाप-स्थानकों का त्याग ४. दुष्कृत - निन्दा ५. सुकृत का अनुमोदन ६. चतुः शरण - ग्रहण और ७. एकत्व - भावना. ' 8 आराधनाकुलक पइण्णयसुत्ताई, भाग २, पृ. २४४, गाथा १-८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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