SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26/ साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री ११. द्वेष के सम्बन्ध में धर्मरुचि अणगार की कथा १२. कलह के विषय में हरिषेण का चारित्र १३. अभ्याख्यान के सन्दर्भ में रुद्र और अंगर्षि की कथा १४. अरति-रति के सन्दर्भ में क्षुल्लककुमार की कथा १५. पैशून्य के विषय में सुबन्धु एवं चाणक्य का दृष्टान्त १६. पर-परिवाद के सम्बन्ध में सती सुभद्रा का चारित्र १७. मायामृषावाद के प्रसंग पर कूटतापस का उदाहरण एवं १८. मिथ्यात्वशल्य के सन्दर्भ में जमाली का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। दसरे मदत्याग प्रतिद्वार में आठ मदों के स्वरूप का निरूपण है तथा इनके सेवन से हानि एवं इनके त्याग से लाभ का उल्लेख किया गया है। वे मद निम्न हैं:- १. जातिमद के विवेचन पर ब्राह्मणपुत्र की कथा है २. कुलमद के उल्लेख पर मरीची का चरित्र है ३. रूपमद के विषय पर दो भाइयों का दृष्टान्त है ४. बलमद के प्रसंग पर मल्लदेव राजा का उदाहरण है ५. श्रुतमद के सन्दर्भ पर आर्य स्थूलभद्र का दृष्टान्त है ६. तपमद के विषय पर दृढ़प्रहारी की कथा है ७. लाभ मद के सन्दर्भ पर ढंढणमुनि की कथा है और ८. ऐश्वर्यमद के प्रसंग पर दो व्यापारियों का उदाहरण उपलब्ध होता है। तीसरे कषायत्याग-प्रतिद्वार में कषायों के त्याग का निर्देश है। यद्यपि अठारह पापस्थानकों में कषायों के त्याग का निर्देश था, फिर भी कषायत्याग-प्रतिद्वार में इसका पुनः निर्देश किया गया है, क्योंकि कषायों का त्याग करना अति दुष्कर होता है। पुनः, अल्प भी कषाय रहने पर वे पुनः उत्पन्न हो जाती हैं। महापुरुषों ने कषाय को विविध उपमाओं से उपमित किया है, इसका भी सुन्दर विवरण प्रस्तुत द्वार में है। चौथा प्रमादत्याग-प्रतिद्वार में प्रमाद के पाँच प्रकारों का स्वरूप बताया गया है। १. मद्यपान-प्रमाद पर लौकिक ऋषि का दृष्टान्त है। मांसाहार के सेवन से विविध दोषों की उत्पत्ति का निर्देश है तथा मांस की मूल्यवत्ता के निर्णय पर अभयकुमार की बुद्धि का प्रसंग है। २. विषय-वासना के सन्दर्भ में कंडरिक मुनि का प्रबन्ध है। ३. कषायप्रमादद्वार के सन्दर्भ में कषायों की दुष्टता का बोधप्रद वर्णन है। ४.निद्राप्रमादद्वार में निद्रा के स्वरूप का एवं अंगदत्त का प्रबन्ध उपलब्ध है। ५. विकथाद्वार में विकथा के भेद, उसके स्वरूप एवं उसके सेवन से होने वाले दुष्ट विपाकों का सुन्दर निर्देश है। ६. प्रमादजुगारद्वार में जुगार (जुआ) का स्वरूप बताया गया है, साथ ही अन्य मतावलम्बियों द्वारा मान्य अन्य आठ प्रकार के प्रमाद के स्वरूप निर्देश है। वे आठ प्रमाद निम्न हैं :-अज्ञान, मिथ्याज्ञान, संशय, राग, द्वेष, स्मृतिध्वंस, धर्म में अनादर और योग के दुष्प्रणिधान। इनके भी सेवन से दोष एवं असेवन से गुण की प्राप्ति का निर्देश है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy