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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 441 नग्गति राजा की कथा यौवन बिजली के समान अस्थिर है, सुख-सम्पदा भी सन्ध्या के बादल की भांति शीघ्र विलुप्त होनेवाली और जीवन पानी के बुलबुले के समान अनित्य है। इस लोक, परलोक में जो भी संयोग हैं, वे सभी अनित्य हैं। एक की अनित्यता को देखकर अनुमान से सर्वगत अनित्यता को मानकर जो उत्तम पुरुष नग्गति राजा के समान धर्म में उद्यम रहता है, वही अपना कल्याण कर सकता है। इस सम्बन्ध में संवेगरंगशाला में नग्गति राजा का निम्न कथानक उपलब्ध है:-810 गंधार देश का स्वामी नग्गति नामक एक राजा था। वह वसन्त का आगमन होने पर अपने उद्यान की शोभा देखने के लिए नगर से निकला। वहाँ जाते हुए उसने मार्ग पर स्थित फल-फूल और पत्तों से लदे एक आम्रवृक्ष को देखा। उसकी रमणीयता से प्रसन्नचित्त होकर उस राजा ने वहाँ से जाते हुए कौतूहलवश एक मंजरी तोड़ ली। यह देख अपने स्वामी के मार्गानुसार चलनेवाले सेवकों में से भी किसी ने मंजरी, तो किसी ने पत्तों के समूह, किसी ने गुच्छे, तो किसी ने डाली के अग्रभाग को तोड़ लिया। किसी ने कच्चे फल तोड़कर एकत्रित कर लिए। इस तरह सबने मिलकर क्षणभर में उस वृक्ष को ढूंठ जैसा बना दिया। आगे चलते हुए सभी उस उद्यान में पहुँचे। थोड़े समय घूमकर फिर सभी उस मार्ग पर ही वापस लौटे। मार्ग में उस वृक्ष को नहीं देखकर राजा ने लोगों से पूछा- “वह आम का वृक्ष कहाँ गया?" तब लोगों ने लूंट के रूपवाले उस आम्रवृक्ष को दिखाया। विस्मित मनवाले राजा ने कहा- “यह ऐसा कैसे बन गया?" तब लोगों ने पूर्व की सारी बात बताई। - इसे सुनकर राजा परम संवेग (वैराग्य) को प्राप्त हुआ। राजा अत्यन्त सूक्ष्म बुद्धि से विचारकर कहने लगा- “अहो! मेरी दुष्ट चेष्टा को धिक्कार है। संसार में ऐसी एक भी वस्तु नहीं है, जिसका नाश नहीं होता हो, अर्थात् सभी वस्तु अनित्य हैं, कोई भी वस्तु नित्य नहीं है। इस आम्रवृक्ष के समान ही शरीर आदि सर्व वस्तुएँ विनाशशील हैं।" इस प्रकार चिन्तन कर महासत्वशाली वह राजा राज्य, अन्तःपुर और नगर को छोड़कर, विरक्त हो, प्रत्येक बुद्ध के चारित्रवाला साधु बन गया। 1 संवेगरंगशाला, गाथा ८०७०-८५८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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