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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 417
प्रकार राजा के सामने बोलने लगीं। इससे क्रोधित होकर राजा ने वररुचि का राज्यसभा में आना बन्द करवा दिया।
एक बार वररुचि ने राज्य में यह बात फैलाई कि उसकी स्तुति से प्रसन्न होकर गंगा मैया उसे सोने की मोहरें देती हैं। इस प्रकार झूठ बोलने वाले वररुचि की यहाँ भी मन्त्री ने पोल खोल दी। अब राजा, आदि सभी उस पर हँसने लगे। यह देखकर वररुचि मन्त्री पर क्रोधित हुआ और उसका छिद्र खोजने लगा।
एकदा शकडाल मन्त्री राजा को भेंट करने के लिए गुप्त रूप से अपने घर पर विविध प्रकार के शस्त्र बनवाने लगा, किन्तु पूर्व द्वेष के कारण वररुचि ने राजा को यह बताया कि मन्त्री राजा को मारने के लिए विविध शस्त्र बनवा रहा है। इससे राजा मन्त्री से विमुख हो गया। अपने से राजा को विमुख देखकर मन्त्री अपने घर गया तथा अपने परिवार के प्राणों की रक्षा हेतु स्वयं ने तालपुट विष खाकर श्रीयक द्वारा राज्यसभा में अपना मस्तक कटवा दिया। श्रीयक को मस्तक काटते देखकर "हा! हा! अहो ! यह क्या अकार्य किया है?” ऐसा कहता हुआ राजा खड़ा हो गया। श्रीयक ने कहा- "हे राजन् ! आप व्याकुल क्यों हो रहे हो ? जो आपका विरोधी है, वह चाहे पिता ही क्यों न हो, उसे सजा मिलनी ही चाहिए।" इस पर राजा ने श्रीयक को मन्त्रीपद स्वीकार करने के लिए कहा, तो श्रीयक ने अपने बड़े भाई को मन्त्रीपद देने का प्रस्ताव किया। स्थूलभद्र को वेश्या के घर से बुलवाकर मन्त्रीपद स्वीकार करने के लिए कहा गया। स्थूलभद्र इस विषय पर विचार करने लगा तथा विचार करते-करते उसे संसार की असारता का बोध होने से वैराग्य उत्पन्न हुआ और स्वयं पंचमुष्ठि - लोच करके उसने मुनिवेश धारण कर लिया। तत्पश्चात् वह सम्भूतविजयजी के पास दीक्षित हुआ ।
स्थूलभद्र अध्ययन हेतु आचार्य भद्रबाहुस्वामी के पास रहा। वहाँ उसने कुछ न्यून दस पूर्व का अध्ययन किया। तत्पश्चात् वह आचार्यश्री के साथ विहारकर पाटलीपुत्र नगर में पहुंचा। वहाँ दीक्षित हुई यक्षा, आदि उनकी सातों बहिनें अपने भाई मुनि को वन्दन करने के लिए आईं। वे आचार्य से पूछकर वन्दन हेतु देवकुलिका के पास जाने लगीं। अपनी साध्वी बहिनों को आता देखकर अपनी ज्ञान (श्रुत) लक्ष्मी का प्रभाव दिखाने के लिए स्थूलभद्र मुनि ने केसरी सिंह का रूप बना लिया। वहाँ आकर वे आर्याएँ भाई की अपेक्षा सिंह को देखकर भयभीत हुईं और आचार्य से निवेदन करने लगी- “हे भगवन्त! सिंह ने हमारे बड़े भाई का भक्षण कर लिया है।" श्रुतज्ञान का उपयोग कर आचार्य ने कहा" जो दिखाई दे रहा है, वही स्थूलभद्र है, अतः तुम पुनः जाकर देखो। " तब वे पुनः वहाँ गईं। वहाँ अपने भाई मुनि को देखकर उन्होंने उसका वन्दन किया और
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