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408 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजना श्री
उठाया और राजपुरोहित को सौंप दिया। उसने पिता से सारी बात बताई। पिता ने अपने पुत्र की स्वस्थता और शान्ति के लिए अनेक उपाय किए, परन्तु उनसे कोई लाभ नहीं हुआ। अन्त में उसे मुनि के पास ले जाया गया । पुरोहित ने मुनि से कहा- “हे भगवन्! इसने आपका अपमान किया है, आप इसे क्षमा कर, स्वस्थ कर दो।” वहाँ वनदेवी ने कहा- “यदि इसे जीवित देखना चाहते हो, तो इसे मुनि को सौंप दो ।"
पुरोहित विचार करने लगा - 'मुनि को सौंपने से मेरा पुत्र जीवित तो रहेगा और मैं इसे देख भी सकूंगा।' अतः पिता ने मुनि को अपना पुत्र स्वीकार करने के लिए कहा। मुनि कहने लगे- साधु असंयमी गृहस्थ को स्वीकार नहीं करते हैं। यदि यह दीक्षा स्वीकार करता है, तो मेरे पास रहे। तब पिता के कहने पर अनिच्छा से उसने मुनि के पास दीक्षा स्वीकार की तथा विनयपूर्वक सूत्रों का गहन अध्ययन किया। इस तरह वह निरतिचारपूर्वक संयम का पालन करने लगा।
मद करने से अशुभ फल की प्राप्ति होती है - ऐसा जानते हुए भी उसने जातिमद को नहीं छोड़ा और अन्त में प्रायश्चित्त किए बिना ही मरकर वह सौधर्म-देवलोक में देव बना । वहाँ से च्यवनकर जातिमद - दोष के कारण नन्दीवर्द्धन नगर में चाण्डाल के घर पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसने अल्प सुकृत के योग से रूपादि गुणों से युक्त यौवनवय को प्राप्त किया। एक दिन वह नागरिकों को विलास करते देखकर विचार करने लगा कि शिष्टजनों के द्वारा निन्दित हुआ मुझे धिक्कार है। हे विधाता ! यदि तूने मुझे निन्दित कुल में जन्म दिया है, तो रूपादि गुण किसलिए दिया ? इस तरह विचारकर वह अन्य देश में चला गया, जहाँ उसकी जाति के विषय में कोई नहीं जानता था। वहाँ से कुण्डिननगर में पहुँचकर वह राजा के मन्त्री की सेवा करने लगा तथा अपने गुणों से उसने मन्त्री को प्रसन्न कर लिया। अब वह पाँचों इन्द्रियों के विषय - सुखों को भोगते हुए वहाँ रहने लगा।
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एक दिन श्रावस्ती नगरी में घूमते हुए संगीत में कुशल उस चाण्डाल के मित्र वहाँ आए और मन्त्री को गीत सुनाने लगे। वहां मन्त्री के पास बैठे अपने मित्र को देखकर भविष्य में अहित का विचार किए बिना वे मित्र से कहने लगे" हे मित्र ! इधर आ ! बहुत समय के बाद तेरे दर्शन हुए हैं। ' इस तरह कहते हुए चाण्डाल के मित्र उसे पास बुलाकर उसका आलिंगन करने लगे तथा उसके पिता के बारे में बताने लगे। उन सभी मित्रों को देखकर वह मुँह छिपाकर वहाँ से चला गया। इससे विस्मित हुए मन्त्री ने उन चाण्डालों से उसका वृत्तान्त पूछा और उन्होंने सारी वास्तविकता बता दी। इससे चाण्डालपुत्र को सूली पर चढ़ाने का
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