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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 349 से तप्त तेरी कोमल काया सूख रही है । तुझे अधिक क्या कहूँ? मेरी प्रार्थना को तू सफल कर।” व्रत-भंग के भय से विषय सुख सेवन करना उचित नहीं है - ऐसा सोचकर सुन्दरी द्वारा मना करने पर भी राजा पुनः आग्रह करने लगा। राजा का अति आग्रह जानकर सुन्दरी ने कहा- “ठीक है । मेरा अभिग्रह जब तक पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक तुम प्रतीक्षा करो।" इस तरह प्रसन्न हुआ राजा सुन्दरी को नाटक, खेलादि दिखाता हुआ समय व्यतीत करने लगा। नन्द का जीव जो बन्दर बना, उसे एक मदारी ने पकड़ा। मदारी बन्दर को अनेक कलाएँ सिखाकर तथा गांव एवं शहर में खेल दिखाता हुआ श्रीपुर नगर पहुँचा। खेल का शौक होने से राजा ने मदारी को बुलवाकर खेल दिखाने के लिए कहा। राजमहल में नाचते हुए बन्दर ने सुन्दरी को राजा के पास देखा और विचार करने लगा कि मैंने इसे कहीं देखा है। इस प्रकार वहाँ उसे जाति-स्मरण-ज्ञान उत्पन्न हुआ, जिससे उसने अपने पूर्वभव को देखा और अपने-आपको धिक्कारने लगा। वह धर्मानुरागी एवं शास्त्रानुसार अनुष्ठान करनेवाला होने पर भी बाल ( अज्ञान) मरण को प्राप्त हुआ था, इसलिए 'मैं तिर्यंच जीवन जी रहा हूँ, किन्तु अब मैं क्या कर सकता हूँ?'- ऐसा विचारकर उसने चारों आहारों का त्याग किया और अनशन स्वीकार कर वह पंचपरमेष्ठि का निरन्तर स्मरण करने लगा, जिससे वह मरकर देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुआ और वहाँ से अवधिज्ञान लगाकर राजा और सुन्दरी को पूर्व वृत्तान्त सुनाकर प्रतिबोध किया, जिससे दोनों ने प्रव्रज्या ग्रहण की। इस प्रकार तिर्यंचयोनि को प्राप्त हुआ जीव भी विशेष आराधना के द्वारा संलेखना करके पण्डितमरण प्राप्त कर सद्गति को प्राप्त कर सकता है। प्रस्तुत कथा में यह बताया गया है कि जिसे मृत्यु से भय लगता है, उसे पण्डितमरण स्वीकार कर लेना चाहिए, क्योंकि एक बार स्वीकार किया गया पण्डितमरण जन्म-जन्मातर के मरण को नष्ट कर देता है। इस सन्दर्भ में संवेगरंगशाला में जो सुन्दरी और नन्द की कथा दी गई है, वह कथा हमें आवश्यकचूर्ण (भाग १, पृ. ५६६ ), आवश्यकवृत्ति (पृ. ४३६ ), स्थानांगवृत्ति (पृ. ४७४), नन्दीसूत्रवृत्ति (पृ. १६७), आदि अनेक ग्रन्थों में भी उपलब्ध होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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