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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 347 इस तरह श्रेणी-आरोहण में जो योग बाधक हों, उन्हें आराधक प्रयत्नपूर्वक दूर करे। उसे मात्र आचार्य के साथ ही आलाप-संलाप करने की छूट रखकर मिथ्यादृष्टि लोगों से मौन रखना चाहिए। अनशन करनेवाले को सर्व सुखशीलता का त्याग करके क्षपक-श्रेणी से आरोहण करके मोक्ष प्राप्त करना चाहिए। संवेगरंगशाला में वर्णित प्रस्तुत कथा का उल्लेख हमें जैन-आगम-ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होता है। सुन्दरी एवं नन्द की कथा ___ इस संसार में जन्म लेकर सभी को अवश्य मरना होता है, अतः ऐसे श्रेष्ठ मरण को प्राप्त करना चाहिए कि जिससे पुनः मरना न पड़े। जीव यदि किसी तरह पण्डितमरण को प्राप्त कर ले, तो वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। इस सम्बन्ध में संवेगरंगशाला में सुन्दरी व नन्द की कथा का उल्लेख मिलता है-764 चम्पानगरी में धन नाम का एक धनाढ्य सेठ रहता था। उसका वसु नाम का एक मित्र था। अपनी मित्रता अखण्ड रखने के लिए सेठ ने अपनी पुत्री सुन्दरी का विवाह वसु सेठ के पुत्र नन्द से किया। दोनों का दाम्पत्य जीवन सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था। एक दिन नन्द ने विचार किया- 'जो विद्या, पराक्रम, आदि गुणों से युक्त होता है, वह स्वार्जित आजीविका प्राप्त करता है और उसी का जीवन ही प्रशंसनीय होता है। पूर्वजों के धन से आनन्द करने में मेरी क्या महत्ता है?' ऐसा विचारकर नन्द अपने पिताजी से आज्ञा माँगकर धनार्जन हेतु जाने के लिए तैयार हुआ। . नन्द को जाने के लिए अति उत्सुक देखकर सुन्दरी भी साथ चलने के लिए आग्रह करने लगी। धन-धान्य से जहाज को भरकर वहाँ से श्रेष्ठ समय में दोनों ने प्रस्थान किया। कुछ समय बाद वे एक द्वीप में पहुंचे। उस द्वीप में नन्द ने अनाजों का क्रय-विक्रय कर खूब धन कमाया। फिर वहाँ से अन्य द्वीप जाने के लिए जहाज से प्रस्थान किया। समुद्र में कुछ ही समय में अति तेज तूफान आने से उस जहाज के टुकड़े-टुकड़े हो गए। भवितव्यता से उन दोनों को लकड़ी का 764 संवेगरंगशाला, गाथा ३६३१-३७०८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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