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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 345 जैन-आगम-ग्रन्थों में उपलब्ध नहीं होती है। इस कथा का मूल स्रोत देखने का हमने प्रयास किया, किन्तु चूर्णिकाल तक इस कथा का मूल स्रोत हमें ज्ञात नहीं हुआ। स्वयम्भूदत्त की कथा साधक को सम्यक् आराधना करने की प्रबल इच्छा हो, परन्तु परिजनों के मोह में उसका ध्यान विचलित हो जाए, तो वह श्रेणी से पतित हो जाता है एवं उसकी आराधना भी नष्ट हो जाती है। इस विषय पर संवेगरंगशाला में स्वयम्भूदत्त की निम्न कथा वर्णित है :-76.3 कन्चनपुर नगर में स्वयम्भूदत्त और सुगुप्त नाम के दो भाई रहते थे। वे दोनों अपने कुलाचार के अनुरूप अपनी आजीविका चलाते थे। एक समय नगर में अति भंयकर दुष्काल पड़ा। उस दुष्काल के कारण अत्यन्त क्षुधा से धन एवं स्वजनों का नाश हो जाने से तथा रोग उत्पन्न हो जाने से बहुत लोग मरने लगे। परिणामतः, बचे हुए लोग अन्य देशों में जाने लगे। इधर स्वयम्भूदत्त और सुगुप्त ने भी एक सार्थवाह को जाते हुए देखा और साथ जाने का विचार कर वे दोनों भी उसके साथ चल दिए। चलते-चलते जब वे एक अरण्य में पहुँचे, तब वहाँ भिल्लों का एक समूह आया और उनको लूटने लगा। सार्थपति के सुभटों एवं भिल्लों ने परस्पर युद्ध किया, परन्तु अत्यन्त निर्दयी और प्रचण्ड बलवाले भिल्लों ने सम्पूर्ण सार्थ को लूट लिया। कुछ लोग भय से भाग गए, इससे दोनों भाई भी अलग-अलग हो गए। भिल्लों ने स्वयम्भूदत्त को पकड़ा, उस पर चाबुक से प्रहार किया और धन माँगने लगे। उसके पास धन नहीं मिलने पर वे लोग बलि के लिए उसे चामुण्डा देवी के मन्दिर ले गए। वहाँ वे लोग तलवार से उसका घात करने लगे। तभी बाहर से आवाज सुनाई देने लगी- “अरे इसे छोड़ो, अपने आपको बचाओ।" ऐसा सुनते ही वे सब स्वयम्भूदत्त को छोड़कर वहाँ से भाग गए। मौका पाकर स्वयम्भूदत्त भी वहाँ से भाग निकला। इस तरह भागते-भागते मार्ग में भयंकर सर्प ने उसे डंस लिया, जिससे उसे महाभयंकर वेदना होने लगी। तब वह विचारने लगा- 'अब मैं निश्चय ही मर जाऊगाँ। हा!हा! विधि का यह विचित्र विधान है।' ऐसा विचारकर वह एक वृक्ष के 763 संवेगरंगशाला गाथा, ३७५४-३७६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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