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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 213 निर्यापक आचार्य (सुस्थित) :- चारित्र से श्रेष्ठ, शरणागतवत्सल, स्थिर, सौम्य, गम्भीर, महासात्विक, आदि-ये सामान्य गुण आचार्य में सहज (स्वभाव) ही होते हैं। इनके अतिरिक्त भी क्षपक-१. आचारवान् २. आधारवान् ३. व्यवहारवान् ४. लज्जा दूर करने वाला-ओवीलग ५. शुद्धि करने वाला-प्रकुर्वी, ६. निर्वाह करनेवाला-निर्यामक ७. अपाय-दर्शक और ८.अपरिश्रावी - इन आठ विशेष गुणों से युक्त आचार्य की खोज करता है। १. आचारवान् :- उक्त गुणों में से सर्वप्रथम आचारत्व गुण की व्याख्या करते हैं- जो निरतिचारपूर्वक पंचाचार का पालन करता है तथा दूसरों को भी पांच प्रकार के आचार के निरतिचार पालन में लगाता है और शास्त्रानुसार आचार का उपदेश देता है, वह आचारवान् कहा जाता है। इसमें दूसरे प्रकार से भी आचारत्व को बताया गया है। जो आचार्य दस प्रकार के कल्पों का पालन करता है तथा पांच समिति और तीन गुप्तियों से युक्त होता है, वह आचारवान् है।485 भगवतीआराधना486 में भी आचार्य के विशेष गुणों का उल्लेख करने के पश्चात् निर्यापक-आचार्य के आचारवान् होने पर क्षपक को क्या लाभ होता है, यह बतलाया गया है। जो आचार्य पंचाचार में तत्पर रहता है और जिसकी सब प्रवृत्तियाँ सम्यक् होती हैं, वह क्षपक से भी पाँच प्रकार के आचारों के पालन में उद्योग कराता है। जो आचार्य आचारवान् नहीं होता, उसका आश्रय लेने में निम्न दोष होते हैं ज्ञानाचार, आदि से थोड़ा-सा भी च्युत हुआ आचार्य उद्गम आदि दोषों से दूषित अशुद्ध वसति, उपकरण, संस्तर और भक्तपान की व्यवस्था करेगा तथा ऐसे परिचायक मुनियों को नियुक्त करेगा, जिन्हें यह भय नहीं है कि इस प्रकार का असंयम करने पर महान् कर्मबन्ध होगा और उससे हमारा संसार बढ़ेगा, जो अनेक आपत्तियों का मूल है; किन्तु आचारवान् आचार्य इन दोषों से रहित होता है, इसलिए जो दोषों से दूर रहता है और गुणों में प्रवृत्ति करता है- ऐसा आचारवान् आचार्य ही निर्यापक होता है, दूसरा नहीं। इस प्रकार आचारत्व गुण का कथन किया है। 485 संवेगरंगशाला, गाथा ४६३०-४६३८. 486 भगवती आराधना, ३१८-३८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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