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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 207
आवश्यक नियुक्ति से लेकर संवेगरंगशाला, अर्थात् बारहवीं शताब्दी तक के ग्रन्थों में क्षपक के मृत देह के विसर्जन की विधि के उल्लेख को देखकर ऐसा लगता है कि प्राचीनकाल में मुनि के मृत देह का दाह संस्कार नहीं होता था, उसे जंगल में विसर्जित कर दिया जाता था।
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