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________________ 174/ साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री इस तरह व्याख्याप्रज्ञप्ति एवं स्थानांगसूत्र में मरण के विविध भेदों पर प्रकाश डाला गया है। व्याख्याप्रज्ञप्ति के अनुसार मरण के दो प्रकार- बालमरण और पण्डितमरण हैं, जबकि स्थानांगसूत्र में मरण के अप्रशस्तमरण और प्रशस्तमरण - इस तरह दो भेद किए गए हैं। पुनः, बालमरण एवं अप्रशस्तमरण के बारह-बारह प्रकारों का उल्लेख करते हुए पण्डितमरण एवं प्रशस्तमरण के दो प्रकारों का वर्णन किया गया है। इस प्रकार स्थानांगसूत्र एवं भगवतीसूत्र में मरण के चौदह भेद मिलते हैं। 40 उत्तराध्ययननियुक्ति की व्याख्या में शान्ताचार्य ने बालमरण के बारह भेदों का उल्लेख किया है, जो निम्न हैं:-341 (क) अप्रशस्तमरण - यह मरण कषायों के आवेश में होता है, इसके बारह भेद हैं: १. बलन्मरण - परीषहों से पीड़ित होने पर संयम त्याग करके मरना। * २. वशार्तमरण - इन्द्रिय विषयों के वशीभूत होकर मरना। निदानमरण - भावी जीवन में धन, वैभव, भोग, आदि की प्राप्ति की इच्छा रखते हुए मरना। ४. तद्भवमरण - उसी भव में मरना। गिरिपतनमरण - पर्वत से गिरकर मरना। तरूपतनमरण - वृक्ष से गिरकर मरना। जलप्रवेशमरण - नदी आदि के जल में डूबकर मरना। अग्निप्रवेशमरण - आग में जलकर मरना। ६. विषभक्षणमरण - विषपान करके मरना। शस्त्रावपाटनमरण - शस्त्र की सहायता से मरना। ११. वैहायसमरण - फांसी लगाकर मरना। . 540 दुविहं मरणे पण्णते, तं जहा-बालमरणे य पंडियमरणेया।(अ) व्याख्याप्रज्ञप्ति (मधुकर मुनि), २/१/२५ पृ. -१८०. (ब) स्थानांगसूत्र, २/४/४११, पृ.-८८ (मधुकरमुनि). 347 उत्तराध्ययननियुक्ति, भाग २, अध्याय ५, पृ. २३७-३८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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