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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 173 यह मरण पण्डित जीवों को प्राप्त होता है। इस कारण इसे पण्डितमरण भी कहा जाता है। पण्डित शब्द का अर्थ है- ज्ञानी या सत्य को समझनेवाला, उसका मरण पण्डितमरण है।336 मूलाचार में आचार्य वट्टकेर ने भी मरण के विविध रूपों पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार मरण के मुख्य तीन भेद हैं- बालमरण, बालपण्डितमरण और पण्डितमरण। ५. बालमरण - अंसयत सम्यग्दृष्टि जीवों का मरण बालमरण कहलाता २. बालपण्डितमरण - संयतासंयत जीवों के मरण को बालपण्डितमरण कहा गया है। ३. पण्डितमरण - केवल ज्ञान के धारक मुनि भगवन्तों का देह-त्याग पण्डितमरण कहा जाता है।37 समाधिमरणोत्साहदीपक में मरण के सात प्रकारों का उल्लेख किया गया है। वे निम्न हैं :-१. बाल-बालमरण २. बालमरण ३. बालपण्डितमरण ४. भक्तप्रत्याख्यान-पण्डितमरण ५. इंगिनीपण्डितमरण ६. प्रायोपगमन-पण्डितमरण तथा ७. पण्डित-पण्डितमरणा338 समाधिमरणोत्साहदीपक में वर्णित इन सातों प्रकार के मरणों में से बाल-बालमरण को अशुभ माना गया है। बालपण्डितमरण, पण्डितमरण एवं उसके तीनों भेदों को तथा पण्डित-पण्डितमरण को शुभ माना गया है। पुनः, इसमें भी पण्डित-पण्डितमरण को परम शुभ कहा गया है, पण्डितमरण को मध्यम कोटि का शुभ कहा गया है तथा बालपण्डितमरण को जघन्य कोटि का शुभ कहा गया है। इस तरह से इस ग्रन्थ में उत्तम शुभ, मध्यम शुभ और जघन्य शुभ के रूप में मरण के तीन विभेद भी किए गए हैं।339 550 सन्ति मे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणान्तिया।अकाम-मरणं चेव सकाम-मरण तहा।। उत्तराध्ययन, १/२. 337 तिविहं भणति मरणं बालाणं बालपंडियाणं चातइयं पंडियमरण जं केवलिणो अनमरति। मूलाचार (पूर्वाद्धी, ५६ 1136 मरणं बालबालाख्यं निन्द्य बालायं ततः। बालपण्डितनामाघ त्रिविधं पण्डिताभिधम्।। समाधिमरणोत्साहदीपक, ११ द्विरुक्तं पण्डितं चैते सप्त भेदा मता मृतेः। 339 समाधिमरणोत्साहदीपक, पृ. १०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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