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जैन साधना का महत्वपूर्ण ग्रन्थ
जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर शाखाओं के आचार्यों ने अन्तिम आराधना या समाधिमरण की साधना पर विपुल साहित्य की रचना की है। दिगम्बर परम्परा में 'भगवती आराधना' और श्वेताम्बर परम्परा में मरण समाधि इस विषय के महत्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। इसी विषय पर श्वेताम्बर आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने लगभग बारहवीं शती में प्राकृत भाषा में एक बृहदकाय ग्रन्थ की रचना की थी, उसे ही आधारग्रन्थ बनाकर साध्वी दिव्यांजना श्रीजी ने 'जैन धर्म में आराधना का स्वरूप' नामक शोध-ग्रन्थ की रचना की है। इस ग्रन्थ में जैन धर्म में आराधना का क्या स्वरूप है, इसकी चर्चा विस्तार से की गयी है। ग्रन्थ की विशेषता यह है कि इसमें साधना
और आराधना से सम्बन्धित अनेक कथाएँ भी उल्लेखित हैं। इससे यह ग्रन्थ सामान्य पाठक की भी रुचि का विषय बन गया है। इन कथाओं में से अनेक कथाएँ दिगम्बर परम्परा के आराधना सम्बन्धी ग्रन्थों जैसे भगवती आराधना, आराधना कथाकोश आदि में भी मिलती है। साध्वी दिव्यांजना श्रीजी ने उन सन्दर्भो का भी यथास्थान उल्लेख किया है, जो उनकी व्यापक अध्ययन दृष्टि का परिचायक है। ग्रन्थ की भाषा-शैली सुग्राहय है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए मैं साध्वीजी को बधाई देता हूँ।
भोपाल १० जुलाई, २००७
- डॉ. रतनचन्द्र जैन पूर्व प्रोफेसर संस्कृत
एवं सम्पादक जिनभाषित
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