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________________ शुभेच्छा जिन्दगी की आदि पर हमारा उतना अधिकार नहीं है, जितना अधिकार हमें हमारे जीवन के अंतिम समय के लिये मिलता है। "संवेगरंगशाला में प्रतिपादित आराधना का स्वरूप : एक तुलनात्मक अध्ययन” शोधग्रंथ में पू. साध्वी प्रियदिव्यांजनाश्रीजी ने दर्शाया है - कब, क्यों और किस तरह जीवन का अन्त हो ताकि हम निःसहाय, आश्रित स्थिति से उभर कर, पापों से बचकर, सहिष्णुतापूर्वक संसार को प्रणाम कर यहाँ से बहुमान सहित प्रयाण कर सकें। न जीने की इच्छा हो, न करने की अभिलाषा, न यश की आशा हो, न कामना हो इस लोक की, न परलोक की - कामनाओं से ऊपर निष्काम भाव से, अन्तिम समय किन मर्यादाओं में बीते इसका गहन अध्ययन किया है। शोधकर्ती साध्वीजी ने और उन्होंने इस ग्रंथ में बतायी हैजीवन के अन्त के पूर्व की साहसिक, वंदनीय उर्ध्वगामी भूमिका। उदाहरणों से सिद्धातों की समझ सरल होती है। इसलिये इस ग्रंथ में अनेक महात्माओं के दृष्टांत दिये गये हैं जिन्होंने अपने जीवन को, काया और कषायों को, समभाव से क्षीण करते हुए, प्रेरणा पूर्ण बनाने का अदम्य साहस किया। मौत को निमंत्रण देना एक बात है। उसका स्वागत करना अलग। मृत्यु को अमृत बनाने की सही राह प्रदर्शित करने वाला यह ग्रंथ हर मुमुक्ष के लिए उपयोगी है। साध्वीश्री साधुवाद की पात्र हैं कि उन्होंने एक ऐसा विशिष्ट विषय चुना जो स्व-पर की जिन्दगी के अन्तिम क्षणों में दीप बन जीवन प्रज्जवलित कर सके। - डॉ. ज्ञान जैन चैन्नई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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