SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 137 230 के लिए आचरणीय हैं। आवश्यक के निम्न पर्यायवाची नाम भी बताए गए हैं१. आवश्यक २. अवश्यकरणीय ३. ध्रुवनिग्रह ( अनादि कर्मों का निग्रह करनेवाला ) ४. विशोधि (आत्मा की विशुद्धि करने वाला) ५. षट्क - अध्ययन - वर्ग ६. न्याय ७. आराधना और ८. मार्ग (मोक्ष का उपाय ) । आवश्यक शब्द के अनेक अर्थ हैं। विशेषावश्यकभाष्य की टीका में उसके निम्न अर्थ किए गए हैं 231 १. २. आवासक है। जो अवश्य करने योग्य कार्य हो, वे आवश्यक कहलाते हैं। जो आध्यात्मिक-सद्गुणों का पूरी तरह आश्रयप्रदाता हो, वह ३. जो आत्मा को पूरी तरह दुर्गुणों से हटाकर सद्गुणों के वश करता है, उसे आवश्यक कहते हैं। ४. जो इन्द्रिय, कषाय, आदि भावशत्रुओं को सर्वतः वश में करता है, वह आवश्यक है। ५. जो आत्मा को ज्ञानादि गुणों से सुवासित एवं अनुरंजित करता है, उसे आवश्यक कहते हैं, अथवा जो आत्मा को सद्गुणों से सुशोभित करते हैं, वे आवश्यक हैं। आत्मविशुद्धि हेतु जैन आगमों में छः आवश्यक कर्म माने गए हैं। वे छः आवश्यक कर्म इस प्रकार हैं। १. सामायिक २. स्तवन ३ वन्दन ४. प्रतिक्रमण ५. कायोत्सर्ग और ६. प्रत्याख्यान । १. सामायिक :- सामायिक समत्ववृत्ति की साधना है। जैनाचारदर्शन में समत्व की साधना नैतिक - जीवन का अनिवार्य तत्त्व है। वह नैतिक - साधना का अथ और इति - दोनों है । समत्व साधना के दो पक्ष हैं- बाह्यरूप में सावद्य ( हिंसक ) प्रवृत्तियों का त्याग है, तो आन्तरिकरूप में वह सभी प्राणियों के प्रति आत्मभाव तथा सुख-दुःख, जीवन-मरण, लाभ-अलाभ, निन्दा - प्रशंसा में समभाव रखना है। सामायिक का फल सावद्ययोग, अर्थात् पाप-कार्यों से विरति है । 232 233 गृहस्थ-साधक सामायिक - व्रत सीमित समय ( ४८ मिनिट), अर्थात् एक मुहूर्त के लिए ग्रहण करता है । आवश्यक कृत्यों में इसको स्थान देने का प्रयोजन यही है कि साधक चाहे वह गृहस्थ हो या श्रमण, सदैव यह स्मृति बनाए रखे कि 230 अनुयोगद्वारसूत्र टीका, उद्धृत श्रमण सूत्र, पृ. ६३. 231 विशेषावश्यकभाष्य टीका, उद्धृत श्रमण सूत्र, पृ. ६१-६२. 232 नियमसार, गाथा १२५ 233 उत्तराध्ययनसूत्र Jain Education International १६/६०-६१. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy